शव लेजाने को नहीं मिली एम्बुलेंस ठेले से ले गए
अंतिम संस्कार को नहीं थे पैसे शव नदी में बहाया
सरकारे आती हैं और गरीव आदिवासी समूह के लिए कई योजनाओं पर बात करती हैं | मगर हकीकत इससे बिलकुल उलट हैं | कोई गरीब आदिवासी बीमार हो तो उसे इलाज से लेकर मरने तक सिर्फ जिल्ल्त मिलती हैं | लम्बे समय से बीमार चल रही महिला की मृत्यु हो गई तो गरीब परिवार महिला का दाह संस्कार भी नहीं कर पाया और शव नदी में बहा दिया |
सीधी जिला मुख्यालय के कोटहा निवासी आदिवासी कोल परिवार की एक महिला लंबे समय से बीमारी थी | अचानक महिला की मौत हो गई |
| मृत महीला का परिवार बेहद गरीब हैं | इस कारण परिवार के पास मृतिका के शव को हिंदू रीति रिवाज के हिसाब से दाह संस्कार करने तक के पैसे नहीं थे | ऐसे में पीड़ित परिवार ने नगर पालिका से मदद मांगी | लेकिन रविवार होने की वजह से दफ्तर भी बंद | अधिकारी भी जिले से बाहर जाने वाले के शव को अब इन अधिकाइयों के छुट्टी से बापस आने तक रोका नहीं जा सकता था | लिहाजा परिजन मजबूरन एक रिक्शे ठेले में मृतिका के शव को लेकर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर सोन नदी में प्रवाहित करने चल पड़े| हालांकि मृतिका के परिजनों ने नगरपालिका से शव वाहन की मांग की थी लेकिन लापरवाह बना नगरी प्रशासन शव वाहन गरीब परिवार को नहीं उपलब्ध करा सका | वही मृतिका के परिजनों में नगरी प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए बताया कि नगर पालिका से शव वाहन की मांग की गई थी | लेकिन नहीं मिल सका है गरीबी है पैसे नही हैं इसलिए सोन नदी में प्रवाहित करने ले जा रहे हैं मृतिका मेरी बहन है जो लंबे समय से बीमारी से पीड़ित थी आज सुबह इसकी मौत हो गई है |