सवाल आज भी जिन्दा है
हम अतीत में सिर्फ भटकते ही रहते हैं, जबकि होना यह चाहिए कि हम उस अतीत से सबक लें। यह कहना है भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव तथा जाने-माने साहित्यकार-कवि मनोज श्रीवास्तव का। वे स्वराज भवन में प्रदेश की कथाकार स्वाति तिवारी की नई कृति ''सवाल आज भी जिन्दा है'' के लोकार्पण अवसर पर बोल रहे थे। भोपाल हादसे में विधवा हुई महिलाओं के जीवन पर एकाग्र इस कृति का लोकार्पण त्रासदी की 28वीं बरसी पर खासतौर से किया गया था। समारोह में हिन्दुस्तान टाइम्स के स्थानीय संपादक द्वैपायन बोस तथा पत्रकार विजय मनोहर तिवारी विशेष रूप से मौजूद थे। अपने उद्बोधन में श्रीवास्तव ने कहा कि जब भी इस तरह के हादसे होते हैं उसके बाद समाज और सरकार सिर्फ मुआवजा या सहायता की आंकड़ेबाजी में उलझा रहता है। जबकि भविष्य में ऐसी घटनायें न हो उस तरफ एक जिम्मेदार निगाह से कोई नहीं देखता। उन्होंने कहा कि इस किताब के जरिये लेखिका ने साहित्य में स्त्री विमर्श की धारणा को नया आयाम भी दिया है। कार्यक्रम में मौजूद द्वैपायन बोस ने कहा कि आमतौर पर ऐसी घटनाओं की बरसी एक औपचारिक कर्मकांड बनकर रह जाती है। लेकिन स्वाति तिवारी ने इस रस्म अदायगी को भी रचनात्मक मोड़ दिया है। उनकी यह पहल हर सृजनशील व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है।गैस कांड पर पुस्तक लिख चुके पत्रकार विजय मनोहर तिवारी ने इस बात पर दु:ख जताया कि इस विभीषिका पर जितना लिखा जाना चाहिए था उतना लिखा नहीं गया। जबकि यह दायित्व स्थानीय लेखकों को निभाना था। किताब की पृष्ठ भूमि पर प्रकाश डालते हुए लेखिका स्वाति तिवारी ने कहा कि जब यह जानकारी मिली कि भोपाल में एक विधवा कॉलोनी है, तो मन में बड़ी पीड़ा हुई। एक स्त्री होने के नाते कसक और भी बढ़ी। इसके बाद ही उस बस्ती में जाने का मन बनाया था। अपने अनुभवों को साझा करते हुए स्वाति ने आगे बताया कि उस दौरान इन महिलाओं तथा उन पर आश्रित बच्चों की स्थितियों को जाना समझा तो यूं लगा मानों अपनी ही दुनिया में सैर कर आई। यही सब दर्द, आंसू और हौसले इस किताब की शक्ल में उभरकर आये। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह कृति पाठकों को पसंद आयेगी। कार्यक्रम का संचालन कला समीक्षक एवं उद्घोषक विनय उपाध्याय ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार व प्रबुद्धजन मौजूद थे।