गुप्त नवरात्री के मध्य बसंत पंचमी अबूझ मुहूर्त
गुप्त नवरात्री के मध्य बसंत पंचमी अबूझ मुहूर्त
गुप्त नवरात्री - 11 फरवरी से19 फरवरी ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेन्द्र शास्त्री माघ शुक्लपक्ष पंचमी जिसे वसंत पंचमी कहा जाता है इस बार 20 वर्ष बाद ऐसी स्थिति बन रही हे कि बंसंत पंचमी दो दो दिन मनेगी27 28 जनवरी 1993 को ऐसा ही संयोग बना था ! वसंत पंचमी के दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी का प्राकट्य हुआ था इसी कारण इस दिन को शास्त्रो में अबुझ मुहूर्त बताया है इस बार वसंत पंचमी कई पंचांगों में 2 दिन बताई है। कुछ पंचांगों ने 14 तो कई पंचांगों ने 15 फरवरी को वसंत पंचमी बताई है ! निर्णय सिंधु में लिखा हे कि चतुर्थी युक्त पंचमी को ही वसंत पंचमी मनाना चाहीये को क्योकि इस दिन प्रात8:21 तक चतुर्थी है इस कारण पूर्वविद्धा तिथि 14 फरवरी को ही वसंत पंचमी मनाई जाना शास्त्र सम्मत है जबकि उदया तिथि के अनुसार 15 फरवरी को वसंत पंचमी बता रहे हैं।पंचमी तिथि 14 फरवरी के प्रातः 8:21 से 15 फरवरी को प्रातः 9:8 तक रहेगी 14 फरवरी को विवाह मुहूर्त बताया गया है जबकी 15 फरवरी को शुक्रास्त का वृद्धत्वदोष होने से विवाह नही होगे इसके बाद 16 फरवरी को शुक्र तारा अस्त होने से एक बार फिर 66 दिन अर्थात 2 माह 6 दिन विवाह मुहूर्त पर विराम रहेगा! प्रतिवर्ष जब सूर्य देव उत्तरायन हो जाते है तो माघ माह के शुक्लपक्ष में सृष्टि के यौवनकाल बसंत ऋतु के प्रारंभकाल प्रतिपदा से नवमी तक गुप्त नवरात्री का पर्व होता है। इसी गुप्त नवरात्री में मध्य पंचमी तिथि को ब्रह्माजी के द्वारा पत्तों पर जल छिड़कने से देवी सरस्वती प्रकट हुई एवं बसंत पंचमी के दिन ही संसार को अपनी वीणा से वाणी प्रदान की तभी से बसंत पंचमी को श्री पंचमी,सरस्वती जयंती वागीष्वरी जयंती के नाम से जाना जाने लगा। जीवन के प्रत्येक कार्य का संचालन बुद्धि, विवेक और ज्ञान के आधार पर ही होता है। इसलिए विद्या बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती के जन्मोत्सव पर्व पर किसी भी कार्य की शुरूआत कि जावे तो वह अतिशुभ एवं सफल रहेगा। बसंत पंचमी को अबुझ मुहूर्त रहता है अर्थात बिना पंचांग देखे ही कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ कर सकते है। ज्योतिष में पाँचवी राषि के अधिष्ठाता भगवान सूर्यनारायण होते है इसलिए बसंत पंचमी अज्ञान का नाष करके प्रकाष की ओर ले जाती है। इसलिए सभी कार्य इस दिन शुभ होते है। बसंत पंचमी की विषेषताएँ1 माघमाह:- इस महिने को भगवान विष्णु का स्वरूप बताया है।2 शुक्ल पक्ष:-इस समय चन्द्रमा अत्यंत प्रबल रहता है।3 गुप्त नवरात्रीः-सिद्धी साधना गुप्तसाधनाके लिए मुख्य समय4 उत्तरायण सूर्यः-देवताओं का दिन इस समय सूर्य देव पृथ्वी के निकट रहते है।5 बसंत ऋतु:-समस्त ऋतुओं की राजा इसे ऋतुराज बसंत कहते है यह सृष्टि का यौवनकाल होता है।6 सरस्वती जयंतीः ब्रह्मपुराण के अनुसार देवी सरस्वती इस दिन ब्रह्माजी के मानस से अवतीर्ण हुई थी। गुप्त नवरात्री 11 फरवरी से 19 फरवरीघटस्थापना या कलष स्थापना करें एवं 9 दिन तक प्रतिदिन मंत्र जाप अनुष्ठान आदि कोई भी सिद्धी साधना करें। कन्याओं को भोजन करावें। बसंत पंचमी पर क्या करें! विद्यार्थी षिक्षक एवं अन्य सभी देवी सरस्वती का पूजन करें व गरीब छात्रों को पुस्तक पेन कॉपी आदि विद्या उपयोगी वस्तु का दान करें एवं सरस्वती मंत्र का जाप करें कई स्थानों पर सामूहिक सरस्वती पूजन के भी आयोजन होते है। इस दिन सारस्वत शक्तियों के पुनर्जागरण होता है। बसंत पंचमी के दिन सबसे अधिक विवाह होते एवं इस दिन गृह प्रवेष वाहन क्रय भवन निर्माण प्रारंभ विद्यारंभ ग्रहण करना अनुबंध करना आभुषण क्रय करना व अन्य कोई भी षुभ एवं मांगलिक कार्य सफल होते है। प्रगट नवरात्रीः 1 चैत्र नवरात्री (चैत्रीय नवरात्री)-धर्म की प्रतीकगुप्त नवरात्रीः 2 आषाड़ नवरात्री (वार्ष्णेय नवरात्री)- अर्थ की प्रतीकप्रगट नवरात्रीः 3 आश्विन नवरात्री(षारदीय नवरात्री) -कामकीप्रतीकगुप्त नवरात्रीः 4माघ नवरात्री (वासंतिक नवरात्री)-मौक्ष की प्रतीक प्रत्येक वर्ष माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। देवी सरस्वती के इस प्राकट्य पर्व को सर्वसिद्धि दायक पर्व माना जाता है। माघ माह में जब सूर्य देवता उत्तरायण रहते हैं ऐसे में गुप्त नवरात्रि के मध्य पंचमी तिथि को लोक प्रसिद्ध स्वयंसिद्ध मुहूर्त के रूप में माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह दिन प्रत्येक शुभ कार्यों के लिए अतिश्रेष्ठ माना जाता है। प्रकृति के चितेरों साहित्य मनीषियों और कवियों ने इस दिन को अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है। यह विद्याकी अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना का दिन है। इस तिथि को वागीश्वरी जयंती और श्रीपंचमी नाम से भी जाना जाता है।शास्त्रों में कहा गया है कि यदि यौवन हमारे जीवन का वसंत है तो वसंत इस सृष्टि का यौवन है। गीता में भी कहा गया है कि वसंत ऋतु के रूप में भगवान कृष्ण प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होते हैं।तंत्र शास्त्रों के मुताबिक वसंत पंचमी को आकर्षण और वशीकरण के प्रयोग बहुत ही प्रभावी और शुभ फलदायी होते हैं। ज्योतिषीय दृष्टि से पांचवीं राशि के अधिष्ठाता भगवान सूर्य नारायण होते हैं इसलिए वसंत पंचमी अज्ञान का नाश करके प्रकाश की ओर ले जाती है। अबूझ मुहूर्त होने से इस दिन शादी-विवाह के लिए मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती का प्राकट्य दिवस भोपाल के ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेन्द्र शास्त्री के मुताबिक वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का विशेष पूजन किया जाता है। इस दिन विवाहगृह प्रवेश पद भार विद्यारंभ वाहन भवन खरीदना आदि कार्य अतिशुभ और विशिष्ट होते हैं। प्रत्येक कार्य का संचालन बुद्धि विवेक और ज्ञान के आधार पर ही होता है इसलिए विद्या-बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के जन्मदिवस से किसी भी कार्य का शुभारंभ किया जाए तो वह कार्य सफल होगा। संवत्सर चक्र का परिवर्तन वसंत पंचमी पर्व का मुख्य हेतु है। यह ग्रीष्म और शीत का संधिकाल है। हमारी सारस्वत शक्तियों के पुनर्जागरण के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है। सृष्टि का संयोग इसी दिन से प्रारंभ होता है। इसलिए इस दिन देवी सरस्वती और भगवान कृष्ण के साथ कामदेव व रति की पूजा की भी परंपरा है। इस माह को मधुमास भी कहा जाता है। सरस्वती को बुद्धि और ज्ञान के साथ ही संगीत एवं कला की देवी भी माना जाता है।