राष्ट्रपति करेंगे भोपाल में देश के जनजातीय संग्रहालय का लोकार्पण
अपनी प्रकृति के अनूठे जनजातीय जीवन, देशज ज्ञान, परम्परा और सौंदर्यबोध पर केन्द्रित अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जनजातीय संग्रहालय का श्यामला हिल्स, भोपाल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 6 जून को करेंगे। संग्रहालय में मुख्य रूप से प्रवेश-द्वार, दीर्घा-पथ, सूचना-केन्द्र, प्रदर्शनी-दीर्घा और सांस्कृतिक वैविध्य, जीवन-शैली, कला-बोध, देव-लोक एवं अतिथि राज्य छत्तीसगढ़ की विशेषताओं को समेटे हुए पाँच दीर्घा बनायी गयी हैं।जनजातीय संग्रहालय में प्रदेश की जनजातियों के जीवन, बहुविध शिल्प, चित्र, आभूषण, पहनावा, खेती-किसानी के उपकरण और जीवनोपयोगी अन्यान्य वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है। जनजातीय जीवन, संस्कृति और कला परम्परा में उत्सुक अध्येताओं, जिज्ञासुओं और शोधार्थियों के साथ-साथ सामान्यजनों को मध्यप्रदेश के जनजातीय जीवन का वैशिष्ट्य एक ही परिसर में देखने-समझने और अंतःक्रिया के लिये उपलब्ध रहेगा।जनजातीय संग्रहालय आदिवासी जीवन की अंतर्चेतना को उसकी समग्रता में ही समझने और अभिव्यक्त करने की कोशिश करेगा। संग्रहालय का दायित्व तथा ध्येय शहरी एवं आदिवासी समाज के प्रति और दोनों के बीच परस्पर संवाद की पृष्ठभूमि तैयार करना है। इसी कारण दीर्घाओं में जहाँ एक ओर प्राकृतिक उपादानों मसलन पुआल पत्ते, पत्थर, मिट्टी, बाँंस, लकड़ी, सूखे वृक्षों एवं टहनियों का भरपूर इस्तेमाल किया गया है, वहीं दूसरी ओर आधुनिक औजारों, तकनीक, दृश्य-श्रव्य माध्यमों और प्रकाश संयोजन का भी इस्तेमाल किया गया है।संग्रहालय के प्रमुख भागप्रवेश द्वार- जनजातीय संग्राहालय भवन के मुख्य द्वार को नर्मदा नदी, नदी के किनारे विकसित जनजातीय जीवन और कथाओं से चित्रांकित किया गया है।दीर्घा पथ-सूचना-केन्द्र सोवीनियर शाप- जनजातीय दीर्घा के अतिरिक्त गलियारों, दर्शकों के लिए सूचना केन्द्र, सोवीनियर शाप और पुस्तकालय भी संग्रहालय का हिस्सा है। सुतली-मूज से बनी खटिया, बाँस से बने टट्टे से पार्टीशन का प्रदर्शन भी देखने लायक है।प्रदर्शनी दीर्घा- इस दीर्घा में प्रदेश के विभिन्न आदिवासी समुदायों बैगा, गोंड, भील, सहरिया, कोल, कोरकू, भारिया आदि क्षेत्र के बच्चों के खेल का प्रदर्शन किया गया है। इस दीर्घा को एकोस्टिकस को प्रस्तुत करने तथा प्रकाश संयोजन के लिए मटकों का प्रयोग गौर करने लायक है।दीर्घा एक- इस दीर्घा में प्रदेश के सांस्कृतिक वैविध्य को दिखाया गया है। मध्यप्रदेश के मानचित्र के मध्य में एक विशाल वट वृक्ष बनाया गया है। मानचित्र में नीचे प्रदेश की सभी प्रमुख जनजातियों की भौगोलिक उपस्थिति को अनेक महत्वपूर्ण प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया गया है।दीर्घा दो- दीर्घा-दो में जनजातियों की जीवन शैली को दिखाया गया है। जनजातीय जीवन में विविध पक्षों की जानकारी अत्याधुनिक माध्यमों से दी गयी है। जनजातियों के आवास में पिछले पाँच-सात दशक में क्या बदलाव आए हैं, इन्हें भी प्रदर्शित किया गया है।दीर्घा तीन- यह कलाबोध दीर्घा है। दीर्घा में साज-सज्जा, सिंगार और गहनों का प्रदर्शन किया गया है। इसके साथ ही जीवन-चक्र से जुड़े संस्कारों, ऋतु-चक्र से जुड़े गीत-पर्वों, मिथकों और अनुष्ठानों को समेटा गया है।दीर्घा चार- इस दीर्घा को देवलोक के रूप में प्रदर्शित किया गया है। इसको टिमटिमाते तारों और नक्षत्रों से सजाया गया है। जनजातियों की देवी-देवताओं को प्रदर्शित किया गया है। यहाँ पहुँचने पर लगता है कि वास्तव में स्वर्ग में आ गये।दीर्घा पाँच- इस दीर्घा में अतिथि राज्य छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति को प्रस्तुत किया गया है। यहाँ मावली माता की गुड़ी, शीतला माता का स्थान, घोटुल, करमासेनी वृक्ष, एक गली जिसमें कुम्हार, पनिका, लोहार, सुनारी के घर और उनके औजार प्रदर्शित किए गए हैं।इस तरह से जनजातीय संग्रहालय में मध्यप्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ की जनजातियों की सम्पूर्ण संस्कृति को एक ही स्थान पर प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है।