बंद करें भोजन की बर्बादी
डॉ. सुनील शर्मावैदिक दर्शन में कहा गया है कि- खाओं मन भर, छोड़ों ना कण भर। लेकिन इसके इसके उलट वर्तमान में चल रहे शादी ब्याह और धूमधाम के सीजन का दर्शन है कि- खाओं कण भर और फेंकों टन भर। वास्तव में शादी, ब्याह और शुभ अवसरों पर होने वाले भोज अब अन्न की बर्बादी का सबब बनते जा रहें है।और इसके जिम्मेदार हम स्वयं है क्योंकि हमारी आदत है कि- खाना है एक या दो कौर लेकिन भर ली पूरी प्लेट, फिर एक दिन में एक ही कार्यक्रम थोड़े ही निपटाना है दूसरे भोज में भी तो जाना है। इस तरह हमारे यहॉ शादियों,उत्सवों या त्यौहारो में होने वाली भोजन की बर्बादी से हम सब वाकिफ हैं। इन अवसरों पर ढेर सारा खाना कचरे में चला जाता है। कई बार तो घरों के आसपास फेंके गए भोजन से उठने वाली दुर्गंधा एवं संड़ाधा वहॉ रहने वालों के लिए परेशानी खड़ी कर देती हैं, सड़ते भोजन से जानवरों की मौतों की खबर भी हम पढ़ते रहते है। विवाह,उत्सवों एवं समारोह को मनाने की परंपरा के कारण होने वाली भोजन की बर्बादी के संदर्भ में बंगलुरू की युनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चर साइंस द्वारा बंगलुरू पर किए गए अधययन के मुताबिक हर साल शहर में केवल विवाहों के दौरान 950 टन खाद्यान्न बर्बाद होता है। जब केवल बंगलुरू के ऑकड़े इतने गंभीर है तो ऐसे हैं तो सो देश के हालात क्या होगें जबकि हर गॉव और शहर में समारोहों में टनों से जूठन फेंका जाना सुनिश्चित है।भोजन का फेंका जाना पहली निगाह में भले ही मामूली सी बात प्रतीत हो या फिर एक बड़े कार्यक्रम की अपरिहार्यता बता कर इससे पल्ला झाड़ लिया जाए लेकिन यह एक गंभीर समस्या है जिसकी प्रकृति विश्वव्यापी है। इस संदर्भ में पिछले साल सितंबर में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में खाद्यान्नों के अपव्यय से जुड़ी चुनौतियों का बारीकी से विश्लेषण किया गया है।संगठन के प्रमुख होजे ग्रेजियानो द्वारा प्रस्तुत- खाद्य अपव्यय पदचिन्ह: प्राकृतिक संसाधनों पर प्रभाव वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य अपव्यय को रोके बिना खाद्य सुरक्षा संभव नहीं है। इस रिपोर्ट में वैश्विक खाद्य अपव्यय का अधययन पर्यावरणीय दृष्टिकोण से करते हुए बताया है कि भोजन के अपव्यय से जल,जमीन और जलवायु के साथ साथ जैव-विविधता पर भी बेहद नकारात्मक असर पड़ता है।रिपोर्ट के मुताबिक उत्पादित भोजन जिसे खाया नहीं जाता,उससे प्रत्येक वर्ष रूस की वोल्गा नदी के बराबर जल की बर्बादी होती है। अपव्यय किए जाने वाले इस भोजन की वजह से तीन अरब टन से भी ज्यादा मात्रा में खतरनाक ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित होती है।दुनिया की लगभग 28 फीसदी भुमि जिसका क्षेत्रफल 1.4 अरब हेक्टेयर है, ऐसे खाद्यान्नों को उत्पन्न करने में व्यर्थ होती है। रिपोर्ट खतरे की घंटी की तरह है जो यह बतलाती है कि हमारी लापरवाही और अनुचित गतिविधियों के कारण पैदा किए जाने वाले अनाज का एक तिहाई हिस्सा यानि करीब 1.3 अरब टन अनाज बर्बाद कर दिया जाता है वहीं 87 करोड़ लोग भूखा सोने के लिए विवश है। खाद्य अपव्यय से होने वाली क्षति बहुदैशिक है और इससे वैश्विक अर्थव्यवस्थ्था को लगभग 750 अरब डालर से अधिक का नुकसान होता है जो कि स्विट्जरलैण्ड के सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है।भोजन के अपव्यय के मामले में हमारे देश की स्थिति अव्वल नंबर पर है। विश्व खाद्य संगठन के प्रतिवेदन के अनुसार देश में हर साल पचास हजार करोड़ रूपये का भोजन बर्बाद चला जाता है, जो कि देश के उत्पादन का चालीस फीसदी है। इस अपव्यय का दुष्प्रभाव हमारे देश के प्राकृतिक संसाधानों पर पड़ रहा है। हमारा देश पानी की कमी से जूझ रहा है लेकिन अपव्यय किए जाने वाले इस भोजन को पैदा करने में 230 क्युसिक किमी पानी व्यर्थ चला जाता है जिससे दस करोड़ लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है।एक ऑकलन के मुताबिक अपव्यय से बर्बाद होने वाली धनराशि से पॉच करोड़ बच्चों की जिदगी संवारीं जा सकती है उनका कुपोषण दूर कर उन्हें अच्छी शिक्षा की व्यवस्था की जा सकती है। चालीस लाख लोगों को गरीबी के चंगुल से मुक्त किया जा सकता है और पॉच करोड़ लोगों को आहार सुरक्षा की गारण्टी तय की जा सकती है।भोजन और खाद्यान्न की बर्बादी रोकने के लिए हमें अपने दर्शन और परंपराओं की पुर्नचिंतन की जरूरत है। हमें अपनी आदतों को सुधारने की जरूरत है। धर्मगुरूओं एवं स्वयंसेवी संगठनों को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए। इस संदर्भ में सैम पित्रोदा द्वारा गठित संस्था इंडिया फूड नेटवर्क द्वारा खाद्य अपव्यय रोकने के लिए एसएमएस अलर्ट कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत प्राप्त सूचना की मदद से समारोह स्थलों से बचे भोजन को इकट्ठा कर जरूरत मंद लोगों में बॉट दिया जाता है। इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अभियान सोंचे, खाएॅ और बचाएॅ भी एक अच्छी पहल है, जिसमें शामिल होकर की भोजन की बर्बादी रोकी जा सकती है।