गुप्त ख़जाने वाले शैलचित्र मिले
राजधानी भोपाल से करीब 165 किमी दूर रायसेन जिले के छिकरा गांव के नजदीक ईसा से 500 साल पुराने शैलचित्र मिले हैं। प्रदेश में भीमबैठका के बाद यह सबसे प्राचीन शैलचित्र माने जा रहे हैं।रमखिरिया-छिकरा गांव के निकट शैलचित्रों में गेरूआ व सफेद रंग से बने हाथी, घोड़े, सिंह आदि पशुओं का चित्रण किया गया है। कहीं-कहीं कुत्तों के चित्र भी मिले हैं। इनका चित्रण मानव के सहयोगी के रूप में किया गया है। इसके साथ ही शैलचित्रों में घोड़ों पर सवार मानवों का चित्रण भी बड़ी सुंदरता से किया गया है। एक शैलचित्रों में मानव हाथों के छापे के निशान देखे जा सकते हैं।इन शैलचित्रों को खोजने वाले भारतीय इतिहास संकलन समिति के सदस्यों के मुताबिक शैलचित्रों में तीन-चार अलंकरण भी पाए गए हैं, जिनमें सफेद रंग के साथ गेरूए रंग का प्रयोग किया गया है। समिति सदस्य विनोद तिवारी के अनुसार यह अलंकरण बड़े रहस्यमय दिखाई देते हैं। स्थानीय ग्रामीणजनों के अनुसार यह चित्र किसी गुप्त खजाने के संकेत हैं। यहां के शैल चित्र ईसा से 500 वर्ष पूर्व ऐतिहासिक कालीन हो सकते हैं। इन शैलचित्रों को देखकर कहा जा सकता है कि ऐतिहासिक काल में यहां मनुष्य तलवार, ढाल, भाला आदि जैसे हथियारों का उपयोग शुरू कर चुका था।राज्य पुरातत्व विभाग ने भी शासन को सौंपी अपनी रिपोर्ट में इन शैलचित्रों का जिक्र किया है। विभाग के शोध अधिकारी डॉ. जितेंद्र जैन के अनुसार गोरखपुर से भोपाल की ओर १२ किमी की दूरी पर छिकरा नामक स्थान पर एक पहाड़ी पर 10 हजार साल पुराने शैलचित्र मिले हैं। शैलचित्रों में सफेद और लाल रंग के चित्र मात्र एक शेल्टर पर प्राप्त हुए हैं। इनमें शिकार दृश्य, शिकारी घुड़सवार, कुत्ता, शेर, घोड़ा, गेंडा, हिरन, खरगोश, स्वास्तिक आदि के चित्र अंकित हैं। अभी तक प्रदेश में इस तरह के शैलचित्र भीमबैठिका में स्थित गुफाओं में ही थे।भारतीय इतिहास संकलन समिति के सदस्य विनोद तिवारी का कहना है कि विंध्याचल पर्वत श्रंखलाओं में जो गुफाएं हैं, वहां इस तरह के अोर भी शैलचित्र मिलने की संभावना है। इतिहासकार भीम बैठिका को मानव का आरंभिक विकास स्थल मानते हैं।