मौन समझाने वाले "ओशो" का जन्मस्थान मौन
मौन की परिभाषा बताने वाले "ओशो" का जन्मस्थान कुचवाड़ा मौन है | वहां सन्नाटा पसरा है | कुचवाड़ा ओशो अनुयायियों के लिए तीर्थ है | लेकिन प्रापर्टी विवाद के चलते कुचवाड़ा में ताले पड़े हैं | कुचवाड़ा से अम्बुज माहेश्वरी की रिपोर्ट |
दुनिया भर के लोगों को मौन की परिभाषा बताकर ध्यान के जरिये शांति का सूत्र देने वाले "ओशो" की जन्मस्थली कुचवाड़ा में इस बार उनके 89वे जन्मोत्सव पर न ध्यान होगा और अनुयायियों की धूम रहेगी | दरअसल फरवरी में आश्रम को लेकर प्रापर्टी विवाद सामने आने और फिर कोरोना के चलते यहां अनुयायियों की आवाजाही पर ब्रेक लग गया था | अब आश्रम के मुख्य द्वार में ताले पड़ गए हैं और यहां कोई आ जा नही रहा है | आचार्य रजनीश के ओशो बन जाने के बाद कुचवाड़ा में उनके जन्मदिन पर होने वाले उत्सव में कई देशों से अनुयायी आते रहे हैं | लेकिन इस बार कुचवाड़ा में सब तरफ मौन ही मौन है और सन्नाटा पसरा हुआ है | आश्रम में केवल जापान की एक सन्यासिन है जो मौन धारण किये हुए है | ओशो के शिष्य सत्यतीर्थ की फरवरी में मृत्यु के बाद समाधि निर्माण पर संकट आया और फिर देखते ही देखते संपत्ति विवाद बढ़ने लगे | रायसेन जिले की बरेली, सिलवानी और उदयपुरा तहसीलों को जोड़ने वाला कुचवाड़ा खरगोन गांव से करीब 8 किलोमीटर दूर है | ओशो का जन्म स्थल होने के कारण कुचवाड़ा गांव अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है | जन्म के वक्त ओशो का नाम चंद्रमोहन जैन था और बचपन से ही उन्हें दर्शन में रुचि पैदा हो गई थी ऐसा उन्होंने अपनी किताब 'ग्लिप्सेंस ऑफड माई गोल्डन चाइल्डहुड' में भी लिखा है |