बुंदेलखंड की अयोध्या है ओरछा
बुंदेलखंड की अयोध्या है ओरछा
यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। ओरछा को दूसरी अयोध्या के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहां पर रामराजा अपने बाल रूप में विराजमान हैं। यह जनश्रुति है कि श्रीराम दिन में यहां तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं।शयन आरती के पश्चातउनकी ज्योति हनुमानजी को सौंपी जाती है, जो रात्रि विश्रामके लिए उन्हें अयोध्या ले जाते हैं-।।सर्व व्यापक राम के दो निवास हैं खास, दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास।।शास्त्रों में वर्णित है कि आदि मनु-सतरूपा ने हजारों वर्षों तक शेषशायी विष्णु को बालरूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की। विष्णु ने उन्हें प्रसन्न होकर आशीष दिया और त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण और कलियुग में ओरछा के रामराजा के रूप में अवतार लिया। इस प्रकार मधुकर शाह और उनकी पत्नी गणेशकुंवरि साक्षात दशरथ और कौशल्या के अवतार थे। त्रेता में दशरथ अपने पुत्र का राज्याभिषेक न कर सके थे, उनकी यह इच्छा भी कलियुग में पूर्ण हुई।मनोहारी कथारामराजा के अयोध्या से ओरछा आने की एक मनोहारी कथा है।एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि सेकृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिनरानी राम भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया।क्रोध में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्तहो तो जाकर अपनेराम को ओरछा ले आओ। रानी नेअयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पासअपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। इन्हीं दिनों संतशिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे। संत सेआशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ़ से दृढ़तर होती गई।लेकिन रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए।अंतत: वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार मेंकूद पड़ी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें रामराजा केदर्शन हुए। रानी ने उन्हें अपना मंतव्य बताया।चतुर्भुज मंदिर का निर्माण रामराजा ने ओरछा चलना स्वीकार किया किन्तु उन्होंने तीन शर्तें रखीं- पहली, यह यात्रा पैदल होगी, दूसरी,यात्रा केवल पुष्पनक्षत्र में होगी,तीसरी,रामराजा की मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी वहां से पुन: नहीं उठेगी। रानी ने राजा को संदेश भेजा कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं। राजा मधुकरशाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए करोड़ों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुर्हूत में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया। कहते हैं कि राम यहां बाल रूप में आए और अपनी मां का महल छोड़कर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे। राम आज भी इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोड़ों का चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान पड़ा है। यह मंदिर आज भी मूर्ति विहीन है। यह भी एक संयोग है कि जिस संवत 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ। जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता हैकि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं। जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति गणेशकुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी। यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं। रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। छड़दारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं। ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर ,राजामहल, रायप्रवीण महल, हरदौल की बैठक, हरदौल की समाधि,जहांगीर महल और उसकी चित्रकारी प्रमुख है।ओरछा झांसी से मात्र 15 किमी. की दूरी पर है। झांसी देश की प्रमुख रेलवे लाइनों से जुड़ा है। पर्यटकों के लिए झांसी औरओरछा में शानदार आवासगृह बने हैं।