उज्जैन में 6 दशक पूर्व हुआ था अर्द्ध-कुम्भ
उज्जैन में 6 दशक पूर्व हुआ था अर्द्ध-कुम्भ
अर्द्ध-कुम्भ कोई अलग पर्व नहीं है। यह एक धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना वाले कुम्भ महापर्व का मध्य सत्र है। यह दो कुम्भ के बीच का सत्र होता है। कुम्भ और अर्द्ध-कुम्भ के आयोजन में योग-संयोग का बड़ा महत्व होता है। इस समय कुम्भ राशि के गुरू से सप्तम सिंह राशि के गुरू में मेष के सूर्य के आने पर हरिद्वार में अर्द्ध-कुम्भ का आयोजन हो रहा है। इस योग में 22 अप्रैल तक अर्द्ध-कुम्भ होगा।उज्जैन में 22 अप्रैल से 21 मई, 2016 तक सिंहस्थ कुम्भ महापर्व का आयोजन होना है। यहाँ सिंहस्थ आयोजन के 10 वाँछित योग माने जाते हैं। सिंह राशि में गुरू, मेष राशि में सूर्य, तुला का चन्द्रमा, वैशाख मास, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा तिथि, कुश-स्थली, स्वाति नक्षत्र, व्यतिपात योग और सोमवार हो, तो सिंहस्थ का आयोजन होता है। यह तो सिंहस्थ के लिये वाँछित योग है।इसी उज्जैन में वर्ष 1950 में संध्यापुरीजी महाराज द्वारा क्षिप्रा के तट पर पहली बार अर्द्ध-कुम्भ मनाया गया। वैशाख पूर्णिमा 2 मई, 1950 को साधु-संतों ने मोक्षदायिनी क्षिप्रा में पवित्र स्नान कर महारुद्र यज्ञ किया। उस समय सिंह राशि से सप्तम राशि कुम्भ राशि के गुरू में मेष का सूर्य और वैशाख मास का योग रहा।इसके अलावा भारत के प्रयाग और नासिक में भी अर्द्ध-कुम्भ स्नान के चिन्ह मिलते हैं। प्रयाग नगरी इलाहाबाद में तुला या वृश्चिक राशि में गुरू होने पर अर्द्ध-कुम्भ मनाया जाता है। वहीं नासिक में अर्द्ध-कुम्भ नहीं मनता, लेकिन कुम्भ में गुरू, सिंह के सूर्य तथा श्रावण मास में ऐसे योग बनते हैं।