श्रीकृष्ण ने उज्जयिनी में मिला था 64 कला का ज्ञान
सम्पूर्ण शिक्षा प्राप्त की थी 126 दिन में उज्जैन, जो पूर्व में उज्जयिनी नगरी के नाम से विख्यात था, शैक्षणिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा है। शिक्षा-स्थली के रूप में यह नगरी नालंदा और काशी के पहले से स्थापित रही है। उज्जयिनी में जगदगुरु योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और मित्र सुदामा के साथ तपोनिष्ठ महर्षि सान्दीपनी से धनुर्विद्या, अस्त्र, मंत्रोपनिषद, गज और अश्वारोहण सहित 64 कला का ज्ञान प्राप्त किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने यह सम्पूर्ण शिक्षा 126 दिन में प्राप्त कर ली थी।जब पूरा सँसार अज्ञान, अशिक्षा और अँधकार में भटक रहा था, तब भारत की ह्रदय-स्थली उज्जयिनी में महर्षि सान्दीपनी का गुरूकुल अपने उत्कर्ष पर था। शिक्षा के उदात मूल्यों से ओत-प्रोत सुविख्यात गुरूकुलों में वेदों, वेदांगों, उपनिषदों सहित 64 कला की शिक्षा दी जाती थी। वहीं मंत्र, न्याय-शास्त्र, राजनीति-शास्त्र, धर्म-शास्त्र, नीति-शास्त्र और अश्व-अस्त्र-शस्त्र संचालन की शिक्षा भी दी जाती थी। यज्ञोपवीत संस्कार होने के बाद ही आश्रम में प्रवेश मिलता था तथा शिष्यों को आश्रम-व्यवस्था के ब्रह्मचर्य नियमों का पालन अनिवार्य रूप से करना पड़ता था। गुरू का सम्मान और उनकी आज्ञा सर्वोपरि रहती थी।उल्लेखनीय है कि उज्जयिनी के राजा विन्द और अनुविन्द की प्रिय बहन मित्रविन्दा से भगवान श्रीकृष्ण ने विवाह किया था। महाभारत में युधिष्ठिर के बहुअर्थी चर्चित प्रसंग 'नरो व कुंजरो वा'' और 'प्रमर्थन घोर मालवेन्द्रस्य वर्मण: अश्वत्थामा हत:''। में वर्णित चर्चित हाथी इन्हीं राजाओं का था, जो महाभारत के युद्ध में उज्जयिनी से भेजा गया था। उज्जयिनी में अनादि काल से गुरूकुल की जो परम्परा रही है, उनमें महाज्ञानी सदगुरू महर्षि सान्दीपनी का गुरूकुल उनके योग्य शिष्य श्रीकृष्ण के कारण विख्यात रहा है। गुरू-शिष्य की इस परम्परा की चर्चा आज भी उज्जैन नगरी में होती है।उज्जैन में इस वर्ष अप्रैल-मई में होने वाले सिंहस्थ के दौरान साधु-संतों और श्रद्धालुओं के बीच भगवान कृष्ण के इस प्रसंग का प्रमुखता के साथ स्मरण किया जायेगा।