रायपुर के करीब स्थित मांढर एक ऐसा गांव है, जहां स्कूली बच्चे विशाल बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर अपने टीचर और प्रिसिंपल से मन की बातें करते हैं। यहां छठवीं से लेकर बाहरवीं तक के बच्चों को बेझिझक हर शनिवार को मन की बात कहने की आजादी होती है। कार्यक्रम की शुरुआत में बच्चों के घबराने पर पहले टीचर और स्टाफ ने अपनी मन की बातें बताई, जिसके बाद बच्चों ने खुलकर अपनी बातें रखी।इस मन की बात से पौधे लगाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है।
व्यक्तित्व विकास के लिए शुरू किए गए इस प्रयास का असर परीक्षाफल में भी देखने को मिला। मन की बात सिर्फ बातों से ही खत्म नहीं हो जाती, बल्कि हर बार पिछली समस्याओं के निराकरण होने या नहीं होने पर भी चर्चा की जाती है। मांढर स्कूल के स्टाफ और बच्चों द्वारा कुछ अलग करने की चाह यही नहीं थमी, औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण से लडऩे के लिए जुनून ऐसा रहा कि मांढर स्कूल ने मिलकर दो वर्ष के भीतर दो से ढाई हजार पौधों का रोपण कर दिया।
सामूहिक प्रयास से लगाए गए पौधे अब औद्योगिक क्षेत्र में लोगों को जीवनदायिनी ऑक्सीजन दे रहा है। नवाचार के क्षेत्र में स्कूल ने एक बार फिर सफलता अर्जित की। अंकुर अभियान के अंतर्गत इस वर्ष जून महीने में पहली बारिश के बाद एक हजार और पौधरोपण करने का निर्णय लिया है, ताकि आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ वातावरण हासिल हो सके।
सरकारी स्कूल की तस्वीर बदलने में प्राचार्य सरिता नात्रे और स्टाफ की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिनके मार्गदर्शन में किए गए प्रयासों की सराहना एनसीईआरटी नई दिल्ली ने भी की है। पिछले वर्ष एनसीईआरटी की टीम ने स्कूल का दौरा किया और स्कूल के गार्डन, 15 एकड़ में रोपे गए पौधे और क्यारियों का अवलोकन किया। मन की बात को भी प्रशंसा मिली। पत्रिका से बातचीत में स्कूल की प्राचार्य सरिता नात्रे ने बताया कि सामूहिक प्रयासों से यह सब संभव हो पाया है। हमारी कोशिश स्कूली बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही उन्हें सामाजिक मूल्यों का ज्ञान और समाज के प्रति जिम्मेदारियों का अहसास कराना है। हम इस प्रयास में काफी हद तक सफल हुए हैं। पढ़ाई में भी बच्चों ने स्कूल का नाम गौरवान्वित किया है।
स्कूल में अतिथि शिक्षक का कॉन्सेप्ट शुरू किया गया, जिसके मद्देनजर रिटायर्ड स्कूल प्रिसिंपल, रिटायर्ड कॉलेज प्रिंसिपल और रिटायर्ड सर्विस क्लास, इंजीनियर आदि ने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। अतिथि शिक्षकों के साथ स्कूल स्टाफ के प्रयासों का असर भी दिखा, जब 10वीं और 12वीं के परीक्षा परिणामों में 35 फीसदी अधिक सफलता अर्जित की गई।
मन की बात कार्यक्रम में एक मासूम बच्चे ने अंग्रेजी की एक टीचर के क्लास में नहीं आने का कारण पूछ लिया, जिसके बाद स्कूल प्रबंधन ने तत्काल समस्या को हल किया, इसी तरह बच्चे अपने अन्य परेशानियों को स्टॉफ और प्रिसिंपल के सामने बेझिझक कहने लगे।
पहली बार मन की बात कार्यक्रम में स्कूल प्रबंधन और शाला विकास समिति ने जब पौधरोपण का फैसला लिया, तब प्रबंधन के पास फंड की समस्या थी। तब बच्चों ने अपने स्कूल से पौधे और गमले लाने का फैसला लिया। यही कारण है कि आज भी स्कूली बच्चे अपने द्वारा लगाए गए पौधों, क्यारियों और अन्य पेड़-पौधों का रखरखाव स्नेह और समर्पण की मिसाल बने हुए हैं।