हरदौल बने शिवराज
ललिता यादवबुंदेलखण्ड में विवाह की रस्म तब तक पूरी नहीं होती जब तक वर-वधू लाला हरदौल के चबूतरे की परिक्रमा कर अपने हथ (हाथ की छाप) न लगा दें। ओरछा के कुंवर लाला हरदौल ने अपनी बहन कुंजा का साथ मरणोपरांत दिया था। उन्होंने अपनी भानजी के विवाह में हर साजा-सामान तब पहुंचाया जब उनकी मृत्यु हो चुकी थी। लाला हरदौल का अपनी बहन और भानजी के प्रति यह अपार स्नेह और प्रेम आज भी जन-जन के मन में बसा है; लाला हरदौल की इसी परंपरा का निर्वाह किया मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने। उद्योग शून्य और विकास की किरणों से अछूते बुंदेलखण्ड में कन्या का जन्म लेना कमोबेश हर मां-बाप के लिए चिंता और परेशानी का सबब बन जाता है। खासकर उनके लिए जो आर्थिक रूप से टूटे हुए हैं। ऐसे में लड़की को पढ़ाना और उसकी अच्छे घर में शादी करना बड़ा मुश्किल काम है लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने गरीबों की इस कठिनाई को कम करने में जो योगदान दिया उससे वे यहां लाला हरदौल माने जाने लगे हैं। शिवराज सिंह चौहान ने लाड़ली लक्ष्मी और मुख्यमंत्री कन्यादान योजना शुरू कर लड़कियों को जो आर्थिक सुरक्षा कवच पहनाया वह अपेन आपमें अविस्मरणीय है। लड़की के जन्म से लेकर उसकी पढ़ाई-लिखाई और शादी की जिम्मेदारी सरकार द्वारा ले लिए जाने से गरीबी की मार से जूझ रहे लोगों के चेहरे से चिंता की लकीरें मिटकर उनकी जगह मुस्कान बिखर गई है। शायद यही वह अहम वजह है जिससे शिवराज को दोबारा मध्य प्रदेश में राज करने का मौका मिल गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले साल जब पूरे मध्य प्रदेश में जन आशीर्वाद यात्रा पर निकले थे तब कई गांवों में घनघोर अंधेरे के बावजूद महिलाओं और लड़कियों ने अपनी नींद त्यागकर सिर पर कलश रखकर अपने शिवराज भैया और शिवराज मामा का स्वागत किया था। खास बात यह है कि इस यात्रा में साथ रहकर बुंदेलखण्ड के छतरपुर और टीकमगढ़ जिले में मैंने खुद देखा कि भीड़ जुटाई हुई नहीं थी बल्कि स्वर्स्फूत भाव से अपने भैया, मामा की एक झलक पाने आई थीं। दरअसल ये रिश्ते एक मुख्यमंत्री और एक नागरिक के न होकर भावनात्मक और इंसानियत के थे। रिश्तों में आत्मीयता न हो तो आधी रात को पत्नी भी अपने उस पति की प्रतीक्षा नहीं करती जिसके साथ सात फेरे लेकर वह जीवनभर साथ निभाने की कसम खाती है। वक्त भले ही बदल गया हो किंतु इंसानियत का जज्बा बिल्कुल नहीं बदला। ओरछा रियासत के महाराजा जुझार सिंह के अनुज लाला हरदौल ने रिश्तों को निभाने की जो सुगंध बिखेरी थी उसे दूसरे लाला हरदौल बनकर शिवराज सिंह चौहान ने जीवंत रखा है। वे हर मां, बहन और बेटी की खुशबू में रच-बस गए हैं। हालांकि सरकार का काम अपने राज्य की प्रजा का अधिकतम कल्याण करना होता है पर शिवराज ने लड़की के जीवन की पीड़ा को आत्मसात कर उनकी राह के कांटे चुनकर उनके बदले में फूल बिछा दिए हैं। अभी हाल में छतरपुर में वीरांगना महोत्सव में सुदूर ग्रामीण अंचलों से तमाम परेशानियां झेलकर महिलाएं सिर्फ अपने भैया और मामा से मिलने आई थीं। उनके चेहरे पर वाकई में सुकून के भाव थे जो किसी अपने से मिलने पर ही आते हैं। शिवराज ने लाला हरदौल की तर्ज पर महिलाओं के कल्याण की जो बीड़ उठाया है उसने लोगों की सोच में बदलाव का काम किया है। अब अब लड़कियां बोझ नहीं वरदान मानी जाने लगी हैं। केवल शिवराज अकेले नहीं हरदौल बने हैं बल्कि उनकी देखा-देखी देश के कई राज्यों में कन्यादान योजना शुरू कर गरीब लड़कियों के हाथ पीले करने का अनूठा कार्य शुरू कर दिया गया है। हरदौल हर कोई नहीं बन सकता लेकिन जो मुसीबत के मारों की मदद करने आगे आ जाता है उसे दुनिया याद रखती है।(लेखिका श्रीमती ललिता यादव मध्यप्रदेश के छतरपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं।)