प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की अदूरदर्शिता का परिणाम है बिजली संकट: जीतू पटवारी
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भोपाल। पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने प्रदेश में बिजली आपूर्ति की बदहाली पर सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि मध्यप्रदेश गंभीर बिजली संकट की ओर बढ़ रहा है। मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने 22,000 मेगावाट बिजली का एग्रीमेंट किया है, लेकिन प्रदेश में जितनी खपत है, उतनी बिजली भी नहीं आ रही है।

 

जीतू पटवारी ने शनिवार को अपने बयान में कहा कि कांग्रेस पार्टी चार बार के अनुभवी मुख्यमंत्री से पूछना चाहती है यह बिजली संकट क्यों है? क्या मई तक बिजली संकट और गहराएगा? यदि हां, तो सरकार ने इसके लिए क्या तैयारी की है? यदि सरकारी सुस्ती जल्दी ही दूर नहीं हुई तो शहरों में भी अघोषित बिजली कटौती होने लगेगी? प्रधानमंत्री के दरबार में हाजिरी लगाने वाले मुख्यमंत्री ने आने वाले बिजली संकट के लिए देश के प्रधान सेवक से क्या मांग की है?

 

पूर्व मंत्री ने पूछा कि प्रधानमंत्री कि ‘‘दूरदर्शिता’’ का सबूत यह है कि तापीय बिजली घरों को चलाने के लिए 12 राज्यों में ‘कोयले के कम भंडार’ की स्थिति की वजह से बिजली संकट पैदा हो सकता है। चिंताजनक तथ्य है कि यह संकट पुराना नहीं है बल्कि अक्टूबर 2021 से ही देश के 12 राज्यों में कोयला आपूर्ति अनियमित हो रही है। मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह सरकार की तरह केंद्र की मोदी सरकार भी चैन की नींद सो रही है और उधर अप्रैल महीने के पहले पखवाड़े में ही घरेलू स्तर पर बिजली की मांग बढक़र 38 साल के उच्चतम पर पहुंच गई थी। अक्टूबर 2021 में बिजली की आपूर्ति मांग से 1.1 प्रतिशत कम थी, लेकिन अप्रैल 2022 में यह फासला बढक़र 1.4 फीसदी हो गया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, झारखंड एवं हरियाणा जैसे राज्यों में बिजली कटौती होने लगी है।

जीतू पटवारी ने मध्यप्रदेश में बिजली संकट में सरकार की नाकामी को बिंदुवार स्पष्ट करते हुए कारण भी गिनवाये। उन्होंने कहा कि दानवीर भाजपा सरकार ने प्रदेश के हिस्से की 1005 मेगावाट बिजली तो गुजरात और महाराष्ट्र में बांट दी और कहा कि हमें बिजली की जरूरत नहीं है। राज्य सरकार के आदेश पर ऊर्जा विभाग ने एनटीपीसी की खरगोन की 330 मेगावाट बिजली महाराष्ट्र, शोलापुर की 295 व मोहदा की 380 मेगावाट बिजली गुजरात को दे दी। पूरी गर्मी यानी 30 जून तक एमपी के हिस्से की बिजली दोनों प्रदेश में जाती रहेगी।

 

उन्होंने कहा कि प्रबंधन का सामान्य सिद्धांत कहता है कि इकाइयों को 26 दिनों का स्टॉक रखना चाहिए लेकिन मध्यप्रदेश में फिलहाल यह स्थिति नहीं है। विपरीत परिस्थितियों से बचने के लिए राज्य सरकार को चाहिए कि वह भी कर्नाटक की तर्ज पर केंद्र से अतिरिक्त कोयले की मांग करे। रेलवे से कोयला आपूर्ति में सहयोग करने के लिए विशेष प्रयास करना होंगे। लेकिन मेरे प्रदेश का दुर्भाग्य है कि यहां लडऩे वाला नहीं डरने वाला मुख्यमंत्री है। कुर्सी बचाने के लिए शिवराज सिंह बार-बार मोदी जी को मैन ऑफ आइडियाज बताते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के हक में उनसे कोयला नहीं मांग पाते हैं।