नईदुनिया ने शुरू की अनोखी पहल
नईदुनिया का छत्तीसगढ़ी फिल्मों पर आधारित ये श्रृंखला छॉलीवुड के लोगों को सूचीबद्ध करने का प्रयास नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों के 51 वर्षों के सफर की कुछ प्रसंगों का उल्लेख मात्र है। मध्यप्रदेश से जब छत्तीसगढ़ अलग हुआ तब यहां के सभी विभागों की संरचना मध्यप्रदेश के जैसी ही रही। मध्यप्रदेश में फिल्म विकास निगम है, पर छत्तीसगढ़ में 16 वर्षों में भी फिल्म विकास निगम की स्थापना नहीं हो सकी।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद ही अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ी फिल्मों को टैक्स फ्री कर दिया था। हालांकि इसका ज्यादा फायदा नहीं मिला छत्तीसगढ़ी फिल्मों को, क्योंकि कुछ दिनों बाद ही 50 रुपए तक के टिकट पर सभी फिल्मों को टैक्स फ्री कर दिया गया। परेश बागबाहरा की अध्यक्षता में फिल्म विकास समिति का गठन किया गया था। दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में छत्तीसगढ़ी फिल्म फेस्टिवल और वर्ष 2002 में छत्तीसगढ़ी फिल्म सम्मान समारोह के अलावा कोई और महत्वपूर्ण कार्य इस समिति के खाते में नहीं है। यह अब अस्तित्व में नहीं है। तब से अब तक छत्तीसगढ़ी फिल्मों को लेकर सरकार से कुछ सकारात्मक पहल का इंतजार है।
छत्तीसगढ़ी फिल्म बिरादरी के सभी लोगों की एक स्वर में मांग है फिल्म विकास निगम की, ताकि फिल्मों के विकास के लिए समर्पित एक संस्था मिल सके। फिल्म विकास निगम बना देने मात्र से छत्तीसगढ़ी फिल्मों का विकास हो, ये जरूरी नहीं है। शासन-प्रशासन को और पूरे छॉलीवुड को सकारात्मक सोच के साथ प्रयास करने होंगे, एक-दूसरे को सहयोग करना होगा। तभी एक बेहतर वातावरण छत्तीसगढ़ी फिल्मों के पक्ष में बन पाएगा। फिल्मों को अनुदान की व्यवस्था हो या फिल्म फेस्टिवल के आयोजन का, यह सभी फिल्म विकास निगम के गठन से सुगम हो जाएगा। विश्व सिनेमा तक पहुंच बनाने का एक अच्छा माध्यम बन सकता है फिल्म फेस्टिवल। अब रायपुर सहित कुछ अन्य शहरों में भी फिल्म सोसाइटी का गठन कर फिल्मों के प्रदर्शन की फिर से शुरुआत हो चुकी है।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों को अभी तक कोई अनुदान का प्रावधान नहीं है, जैसा कि देश के बहुत से राज्यों में है। एक निश्चित राशि सब्सिडी के रूप में फिल्म निर्माता को प्राप्त होने पर वह लगातार बेहतर फिल्म निर्माण के लिए प्रेरित होगा। बहुआयामी कला केंद्र के लिए सरकार की प्रतिबद्धता तो दिखाई देती है, लेकिन अभी तक कुछ भी सही गति के साथ मूर्त रूप लेता नजर नहीं आ रहा है। नई राजधानी में फिल्म सिटी प्रस्तावित है, लेकिन अभी तक वो भी कागजों से बाहर नहीं निकल पा रही है। छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक सौन्दर्य उसकी पहचान है। अगर सकारात्मक प्रयास किए जाएं तो बाहर से भी फिल्म निर्माता यहां आकर फिल्मों की शूटिंग कर सकते हैं। वैसे कुछ भोजपुरी और हिंदी फिल्मों की शूटिंग अब छत्तीसगढ़ में होने लगी है।
नए सिनेमाघरों के निर्माण के लिए सरकार अब तक कोई कदम उठाती नजर नहीं आ रही है। दक्षिण भारत की तरह यहां भी छोटी-छोटी टॉकिजों के लिए पहल किए जाने की आवश्यकता है। सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स के साथ ऐसी नीति बने जो छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए हितकर हो, जैसा कि महाराष्ट्र जैसे विभिन्ना राज्यों में है। वितरकों और छबिगृह संचालकों को छत्तीसगढ़ी फिल्मों के प्रति व्यवसायिक के साथ ही साथ भावनात्मक रूप से जुड़कर काम करना होगा।
छत्तीसगढ़ में दूरदर्शन का 24 घंटे प्रसारण की शुरुआत निकट भविष्य में छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए एक अच्छी खबर साबित होगी। छत्तीसगढ़ी में मनोरंजन चैनल की सुगबुगाहट भी शुरू हो चुकी है। वहीं कुछ एफएम रेडियो चैनलों ने भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों के गानों का प्रसारण कुछ वर्षों से समय-समय पर शुरू कर दिया है। विगत कुछ वर्षों में सिनेमा स्क्रीन की संख्या में इजाफा हुआ है। व्यवसायिक सफलता के साथ ही फिल्मों की गुणवत्ता और उसके स्तर में वृद्धि स्वाभविक प्रक्रिया है।