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कांकेर में विगत वर्षों में आई बाढ़ की तबाही से लोग उभर भी नहीं सके थे कि इस बार फिर बाढ़ आने से लोगों के मन में एक बार फिर खौफ और दहशत है। दूध नदी व पहाड़ी नालों में आई बाढ़ ने शहर के दुकानों और लोगों के घरों को अपनी जद में ले लिया है। सरकार व प्रशासन की तरफ से बाढ़ पीड़ितों के लिए किए गये वादे हवा हवाई साबित हुए। मौसम विभाग द्वारा एक से चार अगस्त तक भारी बारिश की चेतावनी की बाद भी बाढ़ ने प्रशासन के दावों की हवा निकाल कर रख दी है।
दूध नदी के जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। नदी के तटवर्ती इलाकें बाढ़ की जद में है। इन जिन्दगियों का क्या जिनकी छत, गृहस्थी, सपने सब बाढ़ बहा ले जाती है। इस बार फिर बाढ़ ने लोगों के रोंगटे खड़े कर दिये है। बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले कांकेर जिले में इस बार भी बाढ़ से निपटने को कोई कार्य योजना धरातल पर नहीं दिखी। दूध नदी और एक दर्जन पहाड़ी नाले बाढ़ की तबाही लेकर आते हैं।
कई गांवों का संपर्क टूटा
जिलें में तीन सौ से अधिक गांवों का संपर्क मुख्यालय से टूट गया है। बाढ़ से हजारों एकड़ खेत में लगी धान की फसल क्षति हुई है, लेकिन बाढ़ से आने वाली भयावह त्रासदी को रोकने के लिए कोई ठोस कदम अभी तक नहीं उठाये गये है। जिससे लोगों में आक्रोश व्याप्त है।
कांकेर जिलाधीश ने कहा है कि बाढ़ पीड़ितों को सरकारी मदद दी जा रही है। बाढ़ राहत के प्रशासन के दावे पूरी तरह खोखले साबित हो रहे हैं। शहर की सड़कों और गली मोहल्लों से बारिश का मलबा नहीं हटाया गया है। ऐसे में दूर दराज इलाकों में क्या सरकारी मदद बाढ़ पीड़ितों को मिल रही होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
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