इंद्रेश, राम माधव, डायरियाँ और खबरपालिका
कैलाश विजयवर्गीय पुलिस, सी.बी.आई. और अफसरशाही या नौकरशाही का राजनीतिक हितों के लिए उपयोग-दुरूपयोग करने की खबरें अपने देश में आम बात हैं । दबी जुबान से हमने इसकी स्वीकारोक्ति भी देखी है । यही नहीं, अदालतों ने अपने फसलों में इसे लिखा भी है । राजनीति, कार्यपालिका और विधान पालिका की स्वामी-भक्ति के पीछे के तर्क तो समझ में आते हैं, लेकिन खबरपालिका का किसी व्यक्ति, समूह या दल के प्रति कमिटमेंट थोड़ा अजूबा लगता है । कमिटमेंट और स्वामी-भक्ति दिखते हैं, समझ में आता है और उनका उपयोग भी समझा जा सकता है । दरअसल, खबरपालिका अपनी सनसनी की दौड़ में कहीं कमिट होने की बजाय मुफ्त में ही इस्तेमाल हो जाती है । उसे भी पता नहीं चलता कि उसकी हड़बड़ी से किसका कितना नुकसान हुआ है ? इस लाभ-हानि से राष्ट्र, समाज, विचार, आदर्शो और देश के इतिहास के साथ कितना अन्याय या देश का कितना नुकसान होता है, यह भी कोई नहीं जानना चाहता ।होश संभालने के बाद मैने किसी कुदाल आयोग का नाम सुना था । इस आयोग की प्रत्येक सुनवाई या बैठक के बाद ऐसी-ऐसी बातें अखबारों में छपती थीं कि दिल दहल जाता था । देश के आदरणीय, पूजनीय, सर्वमान्य, सर्वोदयी, गांधीवादी, राष्ट्रवादी और रक्त-स्वेद का तर्पण कर आदिवासी और ग्रामीण इलाकों की तस्वीर बदलने वाले नेताओं-कार्यकर्ताओं के विरूद्ध बयानों के माध्यम से ÷प्लांट' की गई बातें मीडिया की सुर्खियां बनवाई जाती थीं । इन खबरों ने संपूर्ण राष्ट्र का आत्मविश्वास तोड़ दिया था । मूर्तिभंजन के इसी तरीके ने इसके बाद प्रतिदिन कई तरह के एक से बढ़कर एक नए रूप धारण किए और एक अदृश्य अविश्वास का माहौल चारों तरफ छा गया । अपनी बात कहने के पूर्व एक क्षेपक शायद उपयुक्त होगा । सोमनाथ का मंदिर जब लुटा था, तब माल असबाब के जाने का दर्द कम था । मंदिर के देवता का सम्मान जाना बड़ी बात थी । उससे भी बड़ी बात यह भी कि उस देवता में संपूर्ण समाज का असीम श्रद्धा-भाव और अद्भुत विश्वास था । उसी के लुटने पर समाज की श्रद्धा और आत्मविश्वास जब टूटा था, तो वह कभी नहीं लौटा और हम सदियों तक गुलाम रहे । कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में प्रधानमंत्री पद के तत्कालीन दावेदारों को उस समय के प्रधानमंत्री नपे यह कहकर फंसवा दिया था कि उनका नाम किसी हवाला व्यापारी की डायरी में था । तब चुनाव होने और भारतीय जनता पार्टी की विजय होने की स्थिति में लालकृष्ण आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने का भी अंदाजा लगाया जा सकता था । इसीलिए उनका नाम भी हवाला डायरियों ने उगल दिया । भारतीय राजनीति में राजनीतिक शुचिता के प्रतीत लालकृष्ण आडवाणी तत्काल किसी पौराणिक ऋषि की तर खड़े हुए और प्रतिज्ञापूर्ण घोषणा कर दी कि अब मैं बेदाग होकर ही संसद में कदम रखूंगा और उन्होंने ऐसा किया थी । अपने इस युग में सीता की तरह अग्नि परीक्षा की प्रक्रिया से गुजरने और इस बीच दिलों के टूटने से राष्ट्र, लोकतंत्र और समाज को कितनी क्षति हुई होगी और इस क्षति का उत्तरदायी कौन ?क्या वह सम्मान लौटाया जा सकता है ? इन प्रश्नों के उत्तर आज तो हमारे पास नहीं हैं । आडवाणी जी की तरह ही कभी शंकराचार्य भी सुर्खियों की सूली पर टांगे गए थे । प्रतिदिन नई खबरों को तोड़ा-मरोड़ा गया, बनाए गए नए तथ्य ।फ उस समय भी देश का बहुसंख्य हिंदू समाज आहत हुआ था। फिर न्यायालय ने उस प्रकरण में क्या फैसला दिया, यह अब तक किसी को नहीं मालूम । खबरपालिका की दन दिनों की सनसनी और हड़बड़ी से जो दिल टूटे थे, उनका हिसाब भी अब किसी को नहीं देना है, न कोई पूछेगा और न कोई उत्तर देगा । यह क्रम ऐसा ही चलता रहेगा । ऐसा कई कनिष्ठ, वरिष्ठ और इतिहास के गर्त में चले गए लोगों के साथ होता ही है । उन्हें तब मिली बेवजह सजा से ऐसा लगता है कि वे सार्वजनिक जीवन में आकर कोई भूल कर बैठे हैं या उन्होंने कोई भूल कर दी थी । ये भी मनुष्य हैं, इनके प्रति भी कई लोगों का विश्वास है । इन्हें कई लोग प्रेम भी करते हैं । प्रेम करने वालों का भी दिल है, लेकिन दिल देखा नहीं जा सकता, छुआ नहीं जा सकता और इसके टूटने की आवाज भी सुनी नहीं जा सकती, इसीलिए न्याय की यह आदिम पद्धति जारी है । सुर्खियों के निशाने पर आया व्यक्ति तब तक नहीं छूट पाता, जब तक कि कोई नई डायारी और नया सिर नहीं मिल जाता । आजकल सुनील जोशी की डायारी उत्साही और स्वामी भक्त पुलिस अधिकारियों के हाथ लग गई है। वे किश्तों में ऐसे-ऐसे नाम जारी कर रहे हैं, जो त्याग, तपस्या और बलिदान की तिमसाल पेश करने वाले लोग हैं । ये वह लोग हैं, जिन्होंने राष्ट्र को देवता मानकर इसके लिए हो रहे यज्ञ में अपने आपको होम करने की शपथ ली है । पिछले पांच दिनों में सामाजिक कार्यकर्ता इंद्रेश कुमार को राष्ट्र के एक बड़े और खतरनाक खलनायक के रूप में पुलिस से मिली जानकारी के आधार पर प्रचारित किया जा रहा है । आज सुना है कि सुनील जोशी की डायरी में राम माधव का नाम भी शामिल है । सुर्खियों ने राम माधव को अपनी सूली पर टांगने का उपक्रम शुरू कर दिया है । इंद्रेश कुमार और राम माधव भौतिक रूप से हाड़-मांस के व्यक्ति जरूर हैं, लेकिन वे एक ऐसी परंपरा के मोती हैं, जिसके प्रति देश के करोड़ों लोगों की अटूट आस्था है । उनके प्रति सुर्खियों के रवैए से देश का दिल टूट सकता है । इस अबुझ हानि को आज हम भले न समझें, लेकिन यह राष्ट्र के प्रति एक अपराध होगा और भविष्य हमें क्षमा नहीं करेगा । सोमनाथ की लूट की तरह ही यह इज्जत की लूट है और इसका नुकसान देश को होगा । खबरपालिका यह न देखे कि राजनीतिक डायरियों के पन्नों पर क्या लिखा है, बल्कि यह भी देखे कि वह क्यों लिखा गया होगा ? जिनको अपने राजनीतिक स्वार्थो की पूर्ति करने के लिए किसी महिमामंडित मूर्ति का भंजन करना ही है, वे तो करेंगे ही । अगर नहीं करेंगे, तो उनके स्वार्थ कैसे पूरे होंगे, पर उनके द्वारा पैदा किए गए अंधकार को दूर करने का उत्तरदायित्व किसका है ? जिसको यह उत्तरदायित्व खासतौार पर पूरा करना चाहिए, अगर वह डायरियों में लिखी या लिखवाई गई तो बातों के एक-एक शब्द को समाज के सामने सच की तरह पेश करने लगेंगे, तो गलत होगा, समाज के साथ, देश के साथ और लोकतंत्र के साथ भी । सच यह भी है कि सांच को आंच नहीं आती । सच एक दिन सामने आता ही है । छल-प्रपंच करके कुछ दिनों के लिए किसी झूठ को सच के आसान पर तो बैठाया जा सकता है, पर यह नहीं हो सकता कि झूठ सच को हमेशा-हमेशा के लिए बेदखल कर दे । हाँ, सच की पुर्नस्थापना में देर जरूर हो जाती है, प्रपंच करने वाली ताकतें उसकी राह रोकती हैं और इसी बीच समाज का जो नुकसान होना होता है, वह हो ही जाता है । (दखल)(लेखक प्रदेश सरकार में वाणिज्य व उद्योग मंत्री हैं)