लोहिया ने राजनीति को राष्ट्रनीति बनाया
lohiya -rajnath singh

डॉ. राममनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित है। उन्होंने राजनैतिक धाराओं को दार्शनिक अवधारणा का रूप दिया। बीसवीं सदी में डॉ. लोहिया एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में उभरे, जिन्होंने राजनीति को भारत की राष्ट्रनीति के रूप में प्रस्तुत किया। यह बात केन्द्रीय गृह मंत्री  राजनाथ सिंह ने ग्वालियर में आईटीएम यूनिवर्सिटी में “डॉ. राममनोहर लोहिया स्मृति व्याख्यान-2016” में अपने व्याख्यान में कही।

 

कार्यक्रम में केन्द्रीय पंचायत, ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री  नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री  जयभान सिंह पवैया, नगरीय विकास एवं आवास मंत्री  माया सिंह, आईटीएम यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति  रमाशंकर सिंह व कुलपति प्रो. के.के. द्विवेदी उपस्थित थे।

 

श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि महात्मा गाँधी की तरह डॉ. राममनोहर लोहिया भी स्वच्छता के पक्षधर थे। वो कहा करते थे कि नदियाँ भारत की भाग्य रेखाएँ हैं। डॉ. लोहिया ने नदियों की स्वच्छता के लिये सामाजिक आंदोलन चलाया। इसी भावना के अनुरूप वर्तमान सरकार ने पवित्र गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिये “नमामि गंगे” कार्यक्रम की शुरूआत की है। वर्ष 2022 तक गंगा को पूर्णत: स्वच्छ बनाने का लक्ष्य है। सरकार गंगा की भाँति अन्य नदियों को भी साफ-सुथरा बनाने का भी प्रयास पूरी शिद्दत के साथ करेगी। गृह मंत्री ने कहा कि डॉ. लोहिया की यह भी मान्यता थी कि मूल चिंतन का विकास स्वभाषा में ही हो सकता है। इसीलिये उन्होंने भारतीय भाषाओं के विकास की पुरजोर हिमायत की। डॉ. लोहिया कुरीतियों के खिलाफ बेबाकी से अपनी राय रखते थे और उस पर अमल भी करते थे।

 

केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि डॉ. लोहिया का ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं था। इसके बावजूद उनकी विचारधारा उत्कृष्ट थीं। उन्होंने धार्मिक आस्थाओं का सदैव ध्यान रखा। डॉ. लोहिया ने भगवान राम, कृष्ण और शिव पर गहन चिंतन कर नई व्याख्या दी और समाज को बताया कि इन सभी ने देश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक एकता के लिये काम किया। उन्होंने कहा कि भारत में धन-दौलत से नहीं त्याग करने वालों को बड़ा माना जाता है। इसके उलट विदेशों में साम्राज्य के विस्तार के आधार पर राजा बड़े माने जाते रहे हैं। पर भारत में भगवान राम और राजा हरिश्‍चंद्र को बड़ा माना गया है। इसी क्रम में उन्होंने सम्राट हर्षवर्धन, संत रविदास और कबीर के त्याग का जिक्र किया। साथ ही कहा कि डॉ. लोहिया की विचारधारा भी इसी अवधारणा का समर्थन करती है।

 

सांसद  जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि डॉ. लोहिया ने राजनीति और धर्म की अपने ही अंदाज में व्याख्या की थी। उनका मानना था कि धर्म दीर्घकालीन राजनीति और राजनीति अल्पकालीन धर्म है। वे कहा करते थे कि जो राजनीति समय की कसौटी पर खरी उतरती है, वह धर्म बन जाती है।