मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार और संगठन को लेकर जो बातें लंबे समय से सुर्खियों में थीं उससे लगता है कि संघ परिवार के कान पक गये हैैं। भाजपा को सुधारने की जितनी कोशिश संघ ने की अभी तक उसमें असफलता ही नजर आ रही है। पिछले दिनों भाजपा और संघ के शीर्ष नेताओं की बैठक में जो कुछ चर्चा हुई और उस गुप्त बैठक की जैसी खबरें छपीं उससे यह तो साफ हो गया है कि अब भाजपा नेता भी संघ के काबू से बाहर जा रहे हैैं। कहां तो सरकार और संघ मिलकर नौकरशाही को नियंत्रित करने के सपने देख रहे हैैं और उसका अपना संगठन ही उसके निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहा है। प्रदेश में तेरह साल से सरकार पर काबिज भाजपा की हालत संगीन है। यह इसलिये भी क्योंकि संघ की हर कोशिश अब तक नाकामयाब होती दिखाई दी है। पहले तो संघ ने प्रदेश प्रभारी के रूप में अपने होशियार स्वयं सेवक विनय सहस्त्रबुद्धे को भेजा मगर वे निगम-मंडलों में अपने चेहेतों को लाल बत्ती दिलाने के मामले में बुरी तरह एक्सपोज हो गये। बेअसर होते सहस्त्रबुद्धे ने असफलता का ठीकरा तत्कालीन प्रदेश संगठन महामंत्री अरविंद मेनन पर फोड़ा। नतीजतन नाटकीय तरीके से मेनन की विदाई हो गई और उनके स्थान पर संघ ने एक टेक्नोक्रेट स्वयं सेवक सुहास भगत को संगठन महामंत्री बनाया। मगर सत्ताधारी दल के लिये जितने तेजतर्रार और कार्यकर्ताओं की सुनने वाले संगठन महामंत्री की जरूरत महसूस की जा रही थी उसमें सुहास सफल होते नहीं दिखे। उदाहरण के लिये मंडल स्तर तक प्रवास करने की जो जरूरत शुरूआत में थी उसे उन्होंने अभी तक पूरा नहीं किया है। जब जमीनी हकीकत पता नहीं होगी, सक्रिय और निष्िक्रय, मेहनतकश और जुगाड़ू, दलाल और पार्टीनिष्ठ कार्यकर्ताओं की पहचान नहीं होगी तो मंडल से लेकर प्रदेश तक सुहास जी किसे सौैंपेंगे संगठन की कमान? ऐसा नहीं होने से जो प्रदेश पदाधिकारियों की पहली फेहरिस्त आई है उसमें चयन को लेकर अनाड़ीपन साफ दिखा। संगठन संघ और खांटी कार्यकर्ताओं की झलक नजर नहीं है। एक तरह से संगठन महामंत्री से जो अपेक्षा कार्यकर्ता कर रहे थे उसमें बुरी तरह असफल होने का प्रमाण नजर आया। इसके पहले भी जब शिवराज सरकार का विस्तार हो रहा था तो उसमें संगठन की छाप नहीं दिखी। कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, मंत्रियों की मनमानी, अफसरों की नफरमानी इन सबसे भाजपा के छोटे बड़े सारे नेता, कार्यकर्ता परेशान हैैं।
शिवराज सरकार और संगठन को लेकर संघ के पास जो फीडबैक आ रहा है वह चिंता में डालने वाला है। भोपाल में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और संघ के सहसर कार्यवाह भैया जी जोशी के साथ जो बैठक थी उसकी चर्चा भी सबको परेशान करने वाली थी। असल में इन दिनों संघ और भाजपा नेताओं का फीडबैक सरकार के बारे में एक जैसा आ रहा है। दोनों ही इस बात पर सहमत हैैं कि अधिकारियों को काबू करने का मामला संभल नहीं पा रहा है। असंतोष बढ़ता जा रहा है और इसका इलाज नहीं किया तो हालात बिगड़ भी सकते हैैं। बताते हैैं कि सुहास भगत सरकार के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैैं। भाजपा कार्यकर्ताओं से भी उनकी निकटता नहीं बन पा रही है। अब संघ की समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर क्या किया जाए? प्रभारी सहस्त्रबुद्धे भी कार्यकर्ताओं से जुड़ाव नहीं बना पा रहे हैैं। भगत जी ने अब तक जो किया है उससे कार्यकर्ताओं तक अच्छा संदेश नहीं पहुंचा है। कमजोर संगठन महामंत्री अक्सर कार्यकर्ताओं की पैरवी न तो संगठन में कर पाते हैैं न सरकार में। यही वजह है कि भाजपा में प्रभारी और संगठन महामंत्री के बदलाव पर भी माहौल में तब्दीली नहीं आई है। निराश कार्यकर्ता ने प्रदेश कार्यालय आना लगभग बंद सा कर दिया है। बीच में कुछ आवाजाही बढ़ी थी मगर संगठन के ठंडेपन से फिर हालात जस के तस हो गये हैैं।
पिछले दिनों पूर्व मु यमंत्री सुंदरलाल पटवा के विधानसभा क्षेत्र मंडीदीप में हुये नगरीय चुनाव में भाजपा की हार को संगठन की कमजोरी और सरकार की नाकामी के रूप में देखा जा रहा है। इसी चुनाव के साथ मैहर विधानसभा उप चुनाव में कुछ महीने पहले रिकार्ड मतों से जीतने वाली भाजपा मैहर नगर पालिका चुनाव में बुरी तरह पराजित हो गई। ऐसा ही नतीजा ईसागढ़ से आया था। खास बात यह है कि इन तीनों जगहों पर संगठन ने पूरी ताकत झौैंकी थी और मु यमंत्री ने रोड शो तक किये थे। मगर यह सब न तो कार्यकर्ताओं की उदासीन को तोड़ पाए और न मतदाताओं को वोट डालने के लिये निकाल पाए। दरअसल संगठन की कमजोरी इसमें सबसे खास वजह देखी जा रही है। एक तरह से संगठन, सरकार का पिछलग्गू दिखाई पड़ता है। उ मीदवार कौन होंगे, यह फैसला तो संगठन करता है मगर मर्जी सरकार की होती है। पूरा दारोमदार संगठन मंत्री और प्रदेश प्रभारी के ईर्दगिर्द घूम रहा है। इन दोनों की सकारात्मकता और मंडल तक के दौरे हैैं संगठन को मजबूत बना सकते हैैं। अभी तो सीन यह है कि कार्यकर्ताओं की संगठन नहीं सुन रहा है और संगठन की सरकार नहीं सुन रही है और सरकार और संगठन की अफसर नहीं सुन रहे हैैं। इन सब बातों से पार्टी हाई कमान और संघ मु यालय नागपुर के माथे पर बल पड़े गये हैैं। ऐसे में फजीहत संघ की हो रही है क्योंकि संघ फेल तो फिर क्या बचेगा?
प्रदेश भाजपा में संघ धमक कम होती जा रही है। इसके सबूत भाजपा संघ के नेताओं की एक बैठक में नजर आए। भोपाल के शारदा विहार में संघ के वरिष्ठ स्वयं सेवक भैया जी जोशी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ शिवराज सरकार के चुनिंदा मंत्रियों, सांसदों और प्रदेश भाजपा पदाधिकारियों की बैठक थी। आमतौर से संघ की बैठक में क्या हुआ यह लीक नहीं होता है। दो दिवसीय इस बैठक में पहले दिन भाजपा नेता नहीं थे लिहाजा अंदर की खबरें न छपीं न टीवी चैनल्स पर दिखाई दीं लेकिन दूसरे दिन जैसे ही भाजपा नेताओं ने इसमें हिस्सा लिया तो शब्दश: खबरें अखबारों में छप गईं। यह तो संघ की धमक कम होने का पहला उदाहरण है। इसके पहले संघ के पदाधिकारियों के निर्देशों की खबरें भी गाहेबगाहे छपती रही हैैं। मगर अमित शाह और भैया जी मौजूदगी में जो कुछ कहा सुना गया उसका बाजार में आना चिंताजनक है। इस बैठक में ऐसे कुछ नेता भी शामिल थे जो उमा भारती को मु यमंत्री पद से हटाने के बाद विधायक दल की कार्यवाही का विवरण मीडिया को मोबाइल आन करके लाइव बता रहे थे। शारदा विहार की बैठक में भी कुछ इसी तरह का लीकेज था। दरअसल संगठन और सरकार के संबंध में उच्च स्तरीय चर्चाओं का इतना बाजारीकरण पहले कम ही देखने को मिला है। बहरहाल संघ परिवार ने प्रदेश भाजपा के साथ शिवराज सरकार की कमान कसने का अघोषित बीड़ा उठा लिया है। ऐसे में नतीजे योजना अनुरूप नहीं आये तो संघ की फजीहत भी सरेआम होना तय है। अभी तक तो जो हालात हैैं वह अच्छे नहीं है क्योंकि संघ से आये स्वयं सेवक आदर्श आचरण के कारण अपनी धमक व प्रतिष्ठा संगठन व सरकार में बनाते थे। मगर अब उनकी कार्यशैली को लेकर भी सवाल उठने लगे हैैं। यही है संघ की कमजोरी की खास वजह। अलग बात है कि इसे न तो संघ मानने को तैयार और न संगठन। सुधार नहीं हुआ तो समझिये गई भैंस पानी में।