भोपाल में राज्य के कर्मचारियों ने साफ कह दिया है कि छठवें वेतनमान की विसंगति दूर किए बगैर उन्हें सातवां वेतनमान स्वीकार नहीं है। उनका आरोप है कि सरकार पैसा बचाने के लिए वर्ष 2006 की रणनीति को फॉलो कर रही है। ऐसा हुआ तो सातवें वेतनमान में कर्मचारियों के बड़े वर्ग को दो से छह हजार रुपए प्रतिमाह नुकसान होगा।
मप्र अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारी मीडिया से मुखातिब हुए। मोर्चा के अध्यक्ष जितेन्द्र सिंह ने बताया कि ब्रह्मस्वरूप समिति ने 59 संवर्गों का वेतनमान अपग्रेड करने की अनुशंसा की थी। जिसका लाभ जनवरी 1996 से मिलना था।
सरकार ने विसंगतिपूर्ण पांचवें वेतनमान पर ही छठवें वेतनमान का लाभ दे दिया। ऐसे कर्मचारियों को अभी तक 4000-100-6000 के आधार पर निर्धारित मूलवेतन मिल रहा है।
उन्होंने बताया कि छठवें वेतनमान में सरकार ने 5000 और 5500 मूल वेतन पाने वाले एक लाख 13 हजार कर्मचारियों का ग्रेड-पे कम कर दिया। इन कर्मचारियों को वर्तमान में 2100 से 3200 रुपए प्रति माह नुकसान हो रहा है। उन्होंने बताया कि प्रदेश के दो लाख कर्मचारियों को छठवें वेतनमान का लाभ 14 से 17 माह बाद दिया गया है। जबकि 12 माह के अंतराल से यह लाभ मिलना था।
सिंह का आरोप है कि मप्र को छोड़कर देश की सभी राज्य सरकारों ने अपने कर्मचारियों को विशेष वेतनवृद्धि का लाभ दिया था। इस कारण राज्य के कर्मचारियों को हर माह 800 से 1500 रुपए का नुकसान हो रहा है। उन्होंने साफ कहा कि हमने मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को ज्ञापन सौंपकर अपनी बात रख दी है।
इसमें कहा गया है कि सातवें वेतनमान का लाभ देने से पहले छठवें वेतनमान की विसंगतियां दूर कर दी जाएं। साथ ही ग्रेड-पे और वेतन वृद्धि की राशि को 2.57 का गुणांक कर सातवां वेतनमान दिया जाए।