बीजापुर । छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के कुटरू थाना क्षेत्र अंतर्गत बेदरे मार्ग पर सोमवार को ग्राम अम्बेली में नक्सलियाें द्वारा किए गये आईईडी धमाके में 8 जवान बलिदानी हाे गये वहीं एक सिविलियन ड्राइवर की भी माैत हाे गई। यह वर्ष 2025 का पहला सबसे बड़ा नक्सली हमला है। नक्सलियों को इस बात की जानकारी पहले से ही थी कि जो फोर्स मुठभेड़ में गई हुई है, वह किस मार्ग से लौटेगी। इसी कारण कुटरू-बेदरे मार्ग में जिस जगह आईईडी प्लांट किया गया था, वहां नक्सली पहले से मौजूद थे। नक्सलियों को पता चल गया था कि मुठभेड़ के बाद जवानों ने अपना मार्ग बदल लिया है। वे इंद्रावती नदी को पार कर बेदरे और फिर कुटरू होते हुए लौटेंगे।
नक्सलियाें ने जिस जगह पर विस्फाेट किया वहां से सड़क के 100 मीटर की दूरी पर राेड ओपनिंग पार्टी लगी हुई थी। रोड ओपनिंग पार्टी का काम यह देखना होता है कि कोई खतरा तो नहीं है, इसके बाद पीछे की टीम आगे आती है। आरओपी के जवान सड़क के दोनों तरफ नजदीक में ही खड़े थे। सड़क से करीब 300 से 400 मीटर अंदर नक्सली पहले से ही एंबुश लगाकर बैठे थे। लेकिन उन्होंने धमाके से पहले फोर्स पर फायरिंग नहीं की, क्योंकि उनका निशाना सिर्फ जवानों से भरी हुई वाहन थी। इसी बीच जवानों से भरी एक के बाद एक 10 वाहन निकले और 11 वें नंबर के वाहन को नक्सलियों ने आईईडी विस्फाेट की चपेट में ले लिया। जिससे 12वें नंबर की गाड़ी के भी कांच टूट गए, हालांकि उसमें सवार जवान और ड्राइवर सुरक्षित हैं। जब धमाका हुआ तो नक्सलियों ने जवानों का ध्यान भटकाने और वहां से भागने के लिए 4 से 5 मिनट तक फायरिंग की। धमाके की आवाज सुनकर सामने निकली जवानाें से काे लेकर जा रहे वाहन भी रुक गए। आरओपी ने ड्यूटी पर निकले जवानों के साथ मोर्चा संभाला और नक्सलियों की गोलियों का जवाब दिया। जब कुटरू और बेदरे कैंप में घटना की जानकारी मिली, तो बैकअप पार्टियां आनी शुरू हो गईं।
नक्सलियों द्वारा आईईडी लगाने के लिए पुल से करीब 50 मीटर दूर जहां सीसी सड़क खत्म हुई और डामर की सड़क शुरू हुई थी, उसके बीच की जगह का चयन किया था, यहां 6 से 7 पेड़ राउंड में थे। नक्सलियों ने आईईडी तो तीन वर्ष पहले लगाई, लेकिन इसमें विस्फाेट करने के लिए वायर रविवार 5 जनवरी की रात को जोड़ा गया। बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित इलाकाें में नक्सलियों ने अब तक इसी तरीके का उपयाेग कर वाहनाें को आईईडी विस्फोट से उड़ाया है। बाैखलाये नक्सलियाें के निशाने पर डीआरजी के जवान ही थे। सोमवार को हुए इस नक्सल हमले का निशाना डीआरजी यानी डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड के जवान ही थे। इस समय नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन डीआरजी के जवान ही हैं, क्योंकि नक्सलियाें काे सबसे ज्यादा नुकसान डीआरजी के जवान ही पहुंचा रही है।
बस्तर में जवान जब भी किसी नक्सल अभियान पर निकलते हैं, तो अमूमन जिस रास्ते से होकर जाते हैं, उस रास्ते से बहुत कम वापस आते हैं। दंतेवाड़ा डीआरजी और एसटीएफ के जवान 12 वाहनाें में लाैट रहे थे। नक्सलियों ने 11 वें नंबर की वाहन को निशाना बनाया। इसमें ड्राइवर सहित 9 लोग सवार थे, जिसमें 8 डीआरजी के जवान थे। धमाका इतना जोरदार था कि वाहन के परखच्चे और जवानों के चीथड़े उड़ गए। ड्राइवर के शरीर के इतने टुकड़े हुए कि उसका शव ढूंढ पाना भी मुश्किल था। घटनास्थल से करीब 500 मीटर के दायरे में शव और वाहन के हिस्से पड़े मिले। इस वाहन में सवार सभी 8 जवान बलिदान हो गए।
इससे यह स्पष्ट है कि नक्सली, जवानाें की बदली हुई रणनीति से वर्ष 2024 में एक भी बड़ा हमला करने में सफल नही हाे पाये थे। इससे बाैखलाये नक्सली जवानाें की गतिविधियाें पर बारीक नजर बनाये हुए थे। राेड ओपनिंग पार्टी के माैजूदगी के बावजूद नक्सली इतनी बड़ी वारदात काे अंजाम देने में सफल हाेना बड़ी लापरवाही के कारण ही संभव है, यह सुरक्षाबलाें के समीक्षा का विषय हाे सकता है।
डीआरजी में एक योजना के तहत सरकार ने स्थानीय युवकों की भर्ती शुरू की है। इसमें जिस जिले का युवक शामिल किया जायेगा। वह उसी जिले की टीम में ही रहेगा, जैसा दंतेवाड़ा का युवक दंतेवाड़ा में ही रहेगा। इसके अलावा जो नक्सली आत्मसमर्पण करते हैं, उन्हें भी डीआरजी में लिया जाता है। चूंकि ये टीम स्थानीय भाषा, बोली, भौगोलिक परिस्थितियां, नक्सलियों की रणनीति से वाकिफ़ होती हैं, इन्हें आगे रखा जाता है। इनका सूचनातंत्र भी मजबूत होता है, जिससे नक्सलियों के खिलाफ लड़ रहे अन्य फोर्स को मदद मिलती है। जिसके कारण अबूझमाड़ तक फोर्स घुस गई है, यह डीआरजी के कारण ही संभव हो पाया है।
गाैरतलब है कि नक्सली जहां-जहां भी आईईडी लगाकर रखते हैं, इसकी जानकारी उन्हें होती है और इसकी जानकारी जगह बदलने पर दूसरे नक्सलियों को देकर जाते हैं। यही कारण है कि तीन साल पहले बिछाई गई आईईडी से नक्सली सटीक निशाना लगाने में कामयाब हो गए। जिस बेदरे मार्ग से सुरक्षाबल के जवान लौट रहे थे, वहां नक्सलियों द्वारा तीन वर्ष पहले ही 50-60 किलो के कमांड आईईडी बिछा दी गई थी, जिसे आस-पास रहकर एक बटन दबाकर विस्फाेट किया जा सकता था, और यही हुआ। कुटरू से बेदरे की डामर की पक्की यह सड़क 10 वर्ष पहले बनी थी। तीन वर्ष पहले भारी बारिश के कारण सड़क बह गई थी। सड़क और पुल दोनों उखड़ गए थे। इसी दौरान यहां सड़क के मरम्मत का काम चला, उसी दौरान नक्सलियाें द्वारा आईईडी लगाई गई थी।