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नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने जज बनने के लिए तीन वर्ष तक वकालत के अनुभव की अनिवार्यता को फिर बहाल कर दिया। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वकालत का अनुभव किसी वकील के औपचारिक रूप से एनरॉल होने की तिथि से मान्य होगा। जिन हाई कोर्ट ने आज से पहले जजों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू कर दी है उन पर यह आदेश लागू नहीं होगा। आज के बाद से तीन वर्ष का अनुभव अनिवार्य होगा।
सनद रहे कि शुरुआत में जज के पद पर नियुक्त होने के लिए बतौर वकील तीन वर्ष का अनुभव अनिवार्य था। 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन वर्ष के अनुभव को समाप्त करते हुए नये लॉ ग्रेजुएट को भी जज के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन करने का रास्ता खोल दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 28 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। एमिकस क्यूरी सिद्धार्थ भटनागर ने नए लॉ ग्रेजुएट को जज के पद पर आवेदन करने की छूट पर सवाल खड़े किए थे। सुनवाई के दौरान अधिकतर हाई कोर्ट ने तीन वर्ष के न्यूनतम अनुभव को बहाल करने की वकालत की थी। केवल सिक्किम और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने नए वकीलों को जज के रूप में नियुक्ति के लिए आवेदन करने की छूट का समर्थन किया था।
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