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भारत ने दुशांबे में हिमनद संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई
new delhi, India reiterates,conservation in Dushanbe

नई दिल्ली । केंद्रीय विदेश तथा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने 29 से 31 मई 2025 तक ताजिकिस्तान के दुशांबे में आयोजित हिमनद संरक्षण पर उच्च स्तरीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित किया। इस सम्मेलन में विश्वभर से विशेषज्ञों, नीति-निर्माताओं और मंत्रियों ने भाग लिया और ताजे जल के स्रोत एवं जलवायु परिवर्तन के संकेतक माने जाने वाले हिमनदों की रक्षा के लिए आवश्यक तात्कालिक कदमों पर चर्चा की।

केंद्रीय राज्यमंत्री कीर्ति सिंह ने कहा कि हिमनदों का पिघलना केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक तत्काल वास्तविकता है, जिसके दूरगामी प्रभाव जल सुरक्षा, जैव विविधता और अरबों लोगों की आजीविका पर पड़ते हैं। उन्होंने विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों, जैसे कि हिमालय पर इसके असमान रूप से गंभीर प्रभावों को रेखांकित किया।


केंद्रीय राज्यमंत्री ने भारत की गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र से गहराई से जुड़ा हुआ है और इस दिशा में कई महत्वपूर्ण पहलें कर रहा है। इनमें राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु परिवर्तन के अंतर्गत हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के सतत विकास हेतु राष्ट्रीय मिशन शामिल है। इसके साथ ही, भारत ने क्रायोस्फीयर एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र की स्थापना की है, जो भारतीय हिमालयी क्षेत्र में हिमनदों एवं हिमनदीय झीलों की निगरानी और अनुसंधान को आगे बढ़ा रहा है।

 

केंद्रीय राज्यमंत्री सिंह ने बताया कि भारत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा संचालित रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग कर हिमनदों के आकार, द्रव्यमान और गतिशीलता में हो रहे परिवर्तनों की नियमित निगरानी कर रहा है। इन प्रयासों को राष्ट्रीय ध्रुवीय और समुद्री अनुसंधान केंद्र, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान , वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, और गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान जैसे प्रमुख राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा किए जा रहे समन्वित अनुसंधान से और अधिक बल मिल रहा है। हिमालयी क्षेत्र में आपदा प्रबंधन को सशक्त बनाने हेतु राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के नेतृत्व में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड जोखिम मानचित्रण एवं पूर्व चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाया गया है।

 

केंद्रीय राज्यमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र की चुनौतियों से निपटने के लिए क्षेत्रीय सहयोग, डेटा-साझाकरण ढांचे में सुधार और समन्वित प्रतिक्रिया तंत्र अत्यंत आवश्यक हैं।

 

वैश्विक संदर्भ में बोलते हुए राज्यमंत्री ने "समान लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व और संबंधित क्षमताएं " के सिद्धांत पर भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया की वैश्विक उत्सर्जन में भागीदारी न्यूनतम है, फिर भी यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत एक महत्वाकांक्षी और संतुलित जलवायु रणनीति को आगे बढ़ा रहा है। अपने पेरिस समझौते के तहत निर्धारित राष्ट्रीय योगदान को प्राप्त करने की दिशा में भारत ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि देश की 48 प्रतिशत से अधिक स्थापित विद्युत क्षमता अब गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से आ रही है।


उन्होंने कहा कि 2005 से 2020 के बीच जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता में 36 प्रतिशत की कमी आई है। 2005 से 2021 के बीच 2.29 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड समतुल्य का अतिरिक्त कार्बन सिंक वनों और वृक्षों के आवरण में वृद्धि के माध्यम से तैयार किया गया है। केंद्रीय राज्यमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि जलवायु अनुकूलन और शमन के लिए विविध और देश-विशिष्ट दृष्टिकोण आवश्यक हैं, जो विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों, विकासात्मक आवश्यकताओं और ऐतिहासिक उत्तरदायित्वों को ध्यान में रखते हों।

 

 

 

MadhyaBharat 31 May 2025

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