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नई दिल्ली। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नेतृत्व में देश के प्रमुख मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने वाराणसी की निचली अदालत के जरिए ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में पूजा की अनुमति दिए जाने के फैसले पर आपत्ति जताई है। मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस मामले पर देश की राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगा है।
आईटीओ स्थित जमीअत के प्रधान कार्यालय के मदनी हॉल में शुक्रवार को संवाददाता सम्मेलन में इस फैसले को पूरी तरह से गैर-जिम्मेदाराना और बेबुनियाद दलीलों पर आधारित बताते हुए इसमें प्रशासन और हिंदू पक्षकार की मिली भगत होने का भी आरोप लगाया गया। साथ ही इस मामले की सारी न्याय प्रक्रिया से अवगत कराने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से भी मुलाकात करने का फैसला लिया गया।
संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी, जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी, अमीर-ए-जमात अहले हदीस मौलाना असगर अली इमाम सल्फी मेहंदी, जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी, जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोहतसिन खान, सांसद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास और सहायक प्रवक्ता कमाल फारूकी ने संबोधित किया।
मुस्लिम नेताओं ने कहा कि किसी भी छीनी हुई जगह या जबरदस्ती की जगह पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती है। उनका कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद व अन्य सभी मस्जिदों का निर्माण इस्लाम के उसूलों के अनुसार जमीन खरीद कर किया गया है। मस्जिद इस्लाम का अहम हिस्सा है और इस्लामी सिद्धांतों पर अमल करते हुए ही मस्जिदों का निर्माण किया जाता है। मुस्लिम नेताओं ने यह भी कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद पर आए निचली अदालत के फैसले से भारतीय मुसलमान में काफी बेचैनी है।
मुस्लिम नेताओं का कहना है कि जिला जज ने अपनी सर्विस के अंतिम दिन बिना किसी ठोस सबूत के और बेबुनियाद जानकारियों पर फैसला दिया है़, जिससे न्याय के प्रति लोगों का विश्वास कम हुआ है। उनका कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाना में कभी भी कोई मूर्ति नहीं थी और ना ही वहां पर कभी पूजा की गई है।लोकतांत्रिक देश में न्यायालय पर हमेशा अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों का भरोसा रहा है, लेकिन हाल-फिलहाल में आ रहे अदालती फैसलों से मुसलमान का विश्वास डगमगाने लगा है।
मुस्लिम नेताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट 1991 में संसद से पास धार्मिक स्थल सुरक्षा कानून का पालन कराने में खामोशी अपनाए हुए हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट इस कानून का सख्ती से पालन कराए तो निचली अदालतें कभी भी इस तरह के फैसले नहीं देंगी। 1991 का कानून 15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता प्राप्ति के दिन तक जो धर्मस्थल जिस स्थिति में है, उसी स्थिति में कायम रखने की गारंटी देता है। इसलिए इस कानून का सख्ती से पालन करने से ही इस तरह की तमाम समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
एक सवाल के जवाब में मुस्लिम नेताओं ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति से मिलने का फैसला इसलिए किया है कि उनसे मुलाकात करके वह अपनी सारी बातें उनके सामने रखेंगे और वह उसका समाधान निकालने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मिलने से गुरेज नहीं करेंगे।
MadhyaBharat
2 February 2024
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