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जगदलपुर। बस्तर संभग में लगातार हो रही मुठभेड़ और सरकार की तरफ से नक्सलियों के साथ शांति वार्ता करने की पहल को लेकर नक्सलियों के सेंट्रल कमेटी सदस्य प्रताप ने शुक्रवार को चार पन्ने का पत्र जारी किया गया है। इस पत्र में सरकार के उन सवालों का जवाब भी दिया है जो उनसे पूछे गए थे। नक्सलियों का मानना है कि सरकार एक तरफ निःशर्त वार्ता का दावा करती है, जबकि दूसरी तरफ उनकी तरफ से कई शर्ते लाद दी जाती हैं, ऐसे में बातचीत संभव नहीं है।
पत्र में नक्सलियों ने अपने आंदोलन को जनता का आंदोलन बताते हुए कहा है कि उनका आंदोलन कमजोर नहीं बल्कि मजबूत हुआ है। अपने पत्र में नक्सलियों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम का जिक्र करते हुए कहा गया है कि विपक्ष को भी सत्तापक्ष बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है, उन पर गंभीर आरोप लगाकर जेल में ढूंस दिया गया है।
नक्सलियों के सेंट्रल कमेटी के सदस्य प्रताप ने कहा कि बस्तर में हो रहे खून खराबा को रोकने के लिए हम वार्ता के लिए तैयार हैं, लेकिन इससे पहले कुछ बातें हैं जिसे स्पष्ट करना है। उन्होंने कहा कि दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प दो बार वार्ता के लिए अपनी राय दे चुके हैं, लेकिन उस पर सरकार की ओर से इमानदारी के साथ कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं आया है। अब ऐसे में यह कहा जा रहा है कि हम वार्ता के लिए तैयार नहीं हैं। माहौल ऐसा बना है कि हमने कुछ शर्त रखी हैं, लेकिन यह गलत है। हम एक जनवादी माहौल में वार्ता चाहते हैं, शांतिपूर्ण माहौल को कायम रखने के लिए वार्ता चाहते हैं। खून खराबा को रोकने के लिए वार्ता को स्वीकारते हैं।
इसके विपरीत में छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा वार्ता के लिए पहले कुछ शर्त रखे हैं। उन्होंने रोड काम बंद नहीं करने की शर्त रखे हैं, लेकिन हर कोई जानता है कि अपने जल-जंगल-जमीन के लिए और अनमोल प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए हम लड़ रहे हैं। वहीं विजय शर्मा संसाधनों का दोहन चाहते हैं। इसका मतलब है कि वार्ता के लिए शर्त नक्सली नहीं बल्कि सरकार रख रही है। इससे यह जाहिर होता है कि सरकार इमानदारी से और बिना शर्त वार्ता के लिए कभी तैयार नहीं है। आप ने किसी माध्यम से हमसे प्रश्न किया था कि हिंसा के माहौल में वार्ता के लिए तैयार हैं? जिसका उत्तर है कि सरकार की चाल है कि नरसंहार बढ़ने से और दमन दहशत, हत्या, अत्याचार और खून खराबा के माहौल को बढ़ाने से नक्सलियों पर दबाव बढ़ेगा और वे लोग वार्ता के लिए मजबूर हो जाएंगे। इसका मतलब यह होता है कि नक्सलियों से आत्मसमर्पण करवाने के अलावा सरकार के विचारों में और कुछ नहीं है। यही बात केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बार-बार दोहरा रहे हैं। वे कह रहे हैं कि नक्सली हथियार छोड़कर वार्ता के लिए आएं, सरकार उन लोगों से वार्ता करेगी, लेकिन यह संभव नहीं है। कोई क्रांतिकारी सरकार के सामने घुटने टेककर वार्ता के लिए नहीं आएगा। यदि सरकार इमानदारी के साथ एक शांतिपूर्ण जनवादी माहौल बनाएगी तो वार्ता के लिए तैयार हैं। उसमें आदिवासी समाज की भूमिका रहेगी।
MadhyaBharat
24 May 2024
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