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वैवाहिक बलात्कार आपराधिक श्रेणी में नहीं
दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मामले पर खंडित फैसला सुनाया। दो बेंच की खंडपीठ में दोनों न्यायाधीशों के मतों में अंतर दिखा। एक न्यायाधीश ने इस प्रावधान को समाप्त करने का समर्थन किया।तो दूसरे न्यायाधीश ने इसे असंवैधानिक बताया ,क्या है वैवाहिक बलात्कार , क्यों आईपीसी की धारा 375 चर्चाओं में है। आइये जानते हैं। कई बार देखा गया है की लोग ऐसे सामाजिक मुद्दों से बचते नजर आते हैं। तर्क होता है समाज का माहौल खराब होगा। लेकिन वास्तविकता में ये ही वो सामाजिक मुद्दे हैं। जिन पर चर्चा की जानी चाहिए। चर्चा के साथ इनका हल निकलना चाहिए।
हालांकि ये इतना आसान नहीं होता है . क्यूंकि इसमें बहुत सारे पहलू काम करते हैं ... दरअसल लॉर्ड मैकाले की सिफारिश पर 1860 में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 . यानी बलात्कार के तहत वैवाहिक बलात्कार के अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी की IPC धारा 375 का क्लॉज़ 2 उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करता है , जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है। इस अपवाद के अनुसार, यदि पत्नी नाबालिग नहीं है, तो उसके पति का उसके साथ यौन संबंध बनाना। या यौन कृत्य करना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता , खंडपीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को समाप्त करने का समर्थन किया। जबकि न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने कहा कि ... भारतीय दंड संहिता के तहत प्रदत्त यह अपवाद असंवैधानिक नहीं है। जस्टिस शकधर ने निर्णय सुनाते हुए कहा, ‘जहां तक मेरी बात है, तो विवादित प्रावधान धारा 375 का अपवाद दो , संविधान के अनुच्छेद 14 जिसमे कानून के समक्ष समानता, अनुच्छेद 15 धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध , 19 (1) (ए) जो की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है साथ ही अनुच्छेद 21 जो की जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है … उसका उलंघन है ... इसलिए इन्हें समाप्त किया जाता है.’ वहीं जस्टिस शकधर ने कहा कि उनकी घोषणा निर्णय सुनाये जाने की तारीख से प्रभावी होगी ... लेकिन जस्टिस शंकर ने कहा, ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 का उल्लंघन नहीं करते। उन्होंने कहा कि अदालतें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित विधायिका के दृष्टिकोण के स्थान पर अपने व्यक्तिपरक निर्णय को प्रतिस्थापित नहीं कर सकतीं।
क्या है केंद्र सरकार की दलील |
केंद्र ने 2017 के अपने हलफनामे में दलीलों का विरोध करते हुए कहा था कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है, जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है। और पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकती है। हालांकि, केंद्र ने इस याचिका पर अपने पहले के रुख पर ‘फिर से विचार’ करने की बात कही है। अब मैरिटल रेप को लेकर इसमें तर्क दिया जाता है की, अगर यह दंडनीय अपराध हुआ तो महिलाएं पुरुषों पर आए दिन ऐसे आरोप लगाती रहेंगी। ipc की धारा 498 के तहत घरेलू हिंसा दंडनीय अपराध है। महिला के सम्मान को किसी तरह चोट पहुंचाना दंडनीय अपराध है। यदि कोई महिला आरोप लगाती है तो जेल का प्रावधान है|लेकिन महिला के साथ पति बलात्कार करे तो इसमें सजा का प्रावधान नहीं है। यानी बदसलूकी पर जेल लेकिन बलात्कार पर कोई सजा नहीं।
क्या कहते हैं आंकड़े
नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे के अनुसार देश में 24 प्रतिशत महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है। एक्सपर्ट्स का मानना है की कई बार मामले सामने इसलिए नहीं आते की समाज क्या कहेगा। ऐसी बुराई जिसको समाज के डर से कोई बाहर नहीं लाना चाहता। कई पुरुषों का तो यहाँ तक मानना है की पत्नी के साथ जबरन सेक्स करना पति का अधिकार है।
प्रदेश जो इन बुराइयों में आगे हैं
पत्नियों के खिलाफ यौन हिंसा में बिहार - 98 % , जम्मू कश्मीर 97 % , आंध्र प्रदेश 96 % , मध्य प्रदेश 96 % , उत्तर प्रदेश और फिर हिमाचल प्रदेश .. हेल्थ सर्वे के अनुसार . यौन उत्पीड के 99 % मामले दर्ज नहीं होते। नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो के अनुसार हर दिन 88 रेप भारत में होते हैं।
अब ये भी समझ लेते हैं की दुनिया में मैरिटल रेप के लिए क्या कानून बने हैं। पूरी दुनिया में पोलैंड में 1932 मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया। हालांकि उससे पहले रूस ने भी इसपर कानून बनाए थे। उसके बाद 1993 में अमेरिका ,1986 यूरोपीय संसद , यहाँ तक की नेपाल ने 2002 में इसे अपराध की श्रेणी में डाला। इसमें सजा का प्रावधान है। कुल मिलाकर 77 देशों में अपराध को लेकर स्पष्ट कानून है। लेकिन भारत उन 34 देशों में हैं जिसमें मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना है।
क्या इसके पीछे महिलाएं भी जिम्मेदार ?
मैरिटल रेप में कानून न बनने के पीछे जितना पुरुष जिम्मेदार है। उतना ही दोष महिलाओं का भी है। कोर्ट में ऐसे कई मामले आये हैं जहाँ महिलाओं ने ipc की धारा 498 सहित कई धाराओं का गलत उपयोग किया है। उसका दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है। फिर चाहे ससुराल पक्ष और पति को फ़साने का हो या अन्य तरह के झूठे प्रकारन। महिलाओं को भी समझना होगा की क़ानून आपको सुरक्षा देने के लिए बना है। इसको हथियार की तरह उपयोग न करें। कानून का सम्मान करें। पुरुष समाज के डरने का ये सबसे बड़ा कारण है। बहरहाल हाई कोर्ट का फैसले में विभिन्नता के बाद याचिका कर्ताओं के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता अभी खुला है।
मध्यप्रदेश के आंकड़े क्या कहते हैं
मध्यप्रदेश की बात करें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक़ जबरन शादी के लिए मजबूर करने के लिए 2020 में एक हज़ार से ज़्यादा लोगों का अपहरण किया गया। वहीं छत्तीसगढ़ में में सिर्फ 59 मामले दर्ज किए गए। एनसीआरबी की के आंकड़ों के मुताबिक 2020 में मध्यप्रदेश में जबरन शादी के लिए मजबूर करने के 1025 मामले दर्ज हुए। ये सभी मामले आईपीसी की धारा 366 के तहत दर्ज किए गए। रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में सबसे ज्यादा मामले यूपी, बिहार, असम, पंजाब और राजस्थान में दर्ज हुए हैं। मध्यप्रदेश में 2020 और 2021 के बीच महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न की 1900 शिकायतें महिला आयोग तक पहुंची। कोरोना संक्रमण काल में भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न का मामला नहीं रुका। आंकड़ों के मुताबिक महामारी में भी कुल 54587 शिकायतें राष्ट्रीय महिला आयोग को मिली थी। तो कुल मिलाकर मैरिटल रेप अपराध की श्रेणी में फिलहाल तो नहीं आता। आगे आने वाले समय में सुप्रीम कोर्ट में जब इससे संबंधित याचिका जाएगी। उसके बाद ही कोई निर्णय हो पायेगा। लेकिन समाज को कानून के डर से नहीं खुद से आत्ममंथन करने की जरूरत है। पुरुषों और महिलाओं दोनों को को इसके बारे में सोचना होगा। कानून को आत्मरक्षा के लिए उपयोग करने की जरूरत है।
MadhyaBharat
21 May 2022
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