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SC ने कहा केंद्र फ्री रेवड़ी कल्चर' पर काबू करे
फ्री की राजनीति पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्तखोरी को सही नहीं माना है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले मुफ्त योजनाओं के वादे को गंभीर मुद्दा बताया है। अब इस मामले में 3 अगस्त को सुनवाई होगी। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केंद्र से कहा है कि इसका समाधान निकाला जाए। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले 'मुफ्तखोरी' पर सख्त होकर कहा कि केंद्र फ्री रेवड़ी कल्चर' पर काबू करे। CJI एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की बेंच ने केंद्र से कहा है कि इस समस्या का हल निकालने के लिए वित्त आयोग की सलाह का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से भी इस मामले में राय मांगी। CJI ने कहा, मिस्टर सिब्बल यहां मौजूद हैं और वह एक वरिष्ठ संसद सदस्य भी हैं। आपका इस मामले में क्या विचार है? सिब्बल ने कहा, यह बहुत ही गंभीर मामला है लेकिन राजनीति से इसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है। जब वित्त आयोग राज्यों को फंड आवंटित करता है तो उसे राज्य पर कर्ज और मुफ्त योजनाओं पर विचार करना चाहिए। सिब्बल ने कहा, वित्त आयोग ही इस समस्या से निपट सकता है। हम आयोग को इस मामले से निपटने के लिए कह सकते हैं। केंद्र से उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह इस मामले में कोई निर्देश देगा। इसके बाद बेंच ने अडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा वह सिब्बल की सलाह पर आयोग के विचारों का पता करें। चुनाव आयोग की तरफ से पेश हुए वकील अमित शर्मा ने कहा कि पहले के फैसले में कहा गया था कि केंद्र सरकार इस मामले से निपटने के लिए कानून बनाए। वहीं नटराज ने कहा कि यह चुनाव आयोग पर निर्भर करता है। सीजेआई रमना ने नटराज से कहा, 'आप सीधा -सीधा यह क्यों नहीं कहते कि सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है और जो कुछ करना है चुनाव आयोग करे। मैं पूछता हूं कि केंद्र सरकार मुद्दे को गंभीर मानती है या नहीं? आप पहले कदम उठाइए उसके बाद हम फैसला करेंगे कि इस तरह के वादे आगे होंगे या नहीं। आखिर केंद्र कदम उठाने से परहेज क्यों कर रहा है।' मामले में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि यह गंभीर मुद्दा है और पोल पैनल को राज्यों और राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों को मुफ्त के वादे करने से रोकना चाहिए। उपाध्याय ने कहा कि राज्यों पर लाखों करोड़ का कर्ज है। हम श्रीलंका के रास्ते पर जा रहे हैं। आपको बता दें देश में कई राज्य कर्ज से डूबे हुए हैं लेकिन चुनाव आते ही मुफ्त की योजनाओं का लालच देकर जनता भ्रमित करते हैं। हाल ही में पंजाब , उत्तराखंड , उत्तरप्रदेश में चुनाव हुए। जिसमे सबसे ज्यादा कर्ज में डूबा है पंजाब। और यहां की नई सरकार आम आदमी पार्टी की सरकार ने कई फ्री की योजनाओं जा जाल बिछाया है। फ्री में पैसा , फ्री में बिजली , फ्री में ऐसी कई योजनाएं हैं जिससे वोट बैंक अपनी ओर किया गया। यही हालात उत्तराखंड , मध्यप्रदेश , पंजाब , राजस्थान , और कई प्रदेशों का है जहां कर्ज लेकर फ्री की योजनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। ये टैक्स पयेर्स के लिए कहाँ तक जायज है यह सोचने का विषय है। दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने तो फ्री की योजनाओं का पुलिंदा खींच दिया है। उनका तर्क रहता है कि वो भ्रष्टाचार को ख़त्म कर फ्री की योजनाएं ला रहे हैं। फ्री देने की जगह विकास की योजनाओं पर बल दिया जा सकता है। यही केजरीवाल की आम आदमी पार्टी फ्री की योजनों के लिए केंद्र से पैसे की मांग कर रही है। एक तो मुफ्तखोरी की आदत जनता को डाली जा रही है। वहीं डर है कि कहीं ये फ्री वाली राजनीति देश को श्रीलंका , नेपाल , पाकिस्तान की तरह न हो जाय। हालाँकि जानकारों का मानना है कि भारत श्रीलंका , नेपाल की तरह कुछ व्यवसाय पर डिपेंडेंट नहीं है। इसलिए भारत की हालत वैसी नहीं होगी। लेकिन फ्री की राजनीति देश के विकास के लिए घातक है।
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