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SC ने याचिकाकर्ता हिमांशु पर 5 लाख का जुर्माना लगाया
छत्तीसगढ़ में2009 में सुरक्षा बलों पर आदिवासियों की नृशंस हत्या के झूठे आरोप को लेकर जांच की याचिका खारिज हो गई है। नक्सली अभियान के दौरान लगाते हुए सीबीआइ जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जुर्माने सहित खारिज कर दी। कोर्ट ने पेश सामग्री का विश्लेषण करने के बाद माना कि जनहित याचिका में सुरक्षा बलों पर लगाए गए आरोप झूठे लगते हैं। न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और जेबी पार्डीवाला की पीठ ने जनहित याचिका में सुरक्षा बलों पर झूठे आरोप लगाने वाले याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर पांच लाख का जुर्माना लगाया है। साथ ही जनहित याचिका में झूठे आरोप लगाने के मामले में छत्तीसगढ़ सरकार और सीबीआइ को याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने की भी छूट दी है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में वनवासी चेतना आश्रम नाम से एनजीओ चलाने वाले याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार ने अन्य लोगों के साथ मिल कर 2009 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में 12 अन्य लोगों को भी याचिकाकर्ता बनाया गया था और कहा गया था कि वे पीड़ित हैं और उनके परिजनों की नरसंहार में हत्या हुई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि छत्तीसगढ़ पुलिस, केन्द्रीय बल जैसे सीआरपीएफ व अन्य सुरक्षा बलों ने 17 सितंबर 2009 और एक अक्टूबर 2009 को दंतेवाड़ा के गांव गच्छनपल्ली, गोमपाड और बेलपोचा में गांव वाले आदिवासियों का नरसंहार किया था। याचिका में बुर्जुग और बच्चों की भी सुरक्षा बलों द्वारा नृशंस हत्या किये जाने की बात कही गई थी और कोर्ट से इस नरसंहार की सीबीआई से जांच कराने की मांग की गई थी। अपनी बात के समर्थन में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 2010 में दिल्ली की जिला अदालत में हिमांशु के अलावा अन्य पीड़ित याचिकाकर्ताओं के दर्ज कराए गए बयानों का हवाला दिया था जिसमें साबित होता था कि सुरक्षा बलों पर आदिवासियों की हत्या के लगाए गए आरोप झूठे हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे में प्रथम ष्टया कहा जा सकता है कि प्रथम सूचना देने वालों ने पुलिस को सुरक्षा बलों द्वारा नरसंहार किये जाने की झूठी सूचना दी। कोर्ट ने किसी को फंसाने के लिए झूठी सूचना देने संबंधी आइपीसी की धारा 211 का जिक्र किया है। कोर्ट ने सीबीआइ और छत्तीसगढ़ राज्य को याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की छूट देते हुए यह भी कहा कि वे कानून के मुताबिक उचित कार्रवाई कर सकते हैं साथ ही स्पष्ट किया है कि कार्रवाई सिर्फ धारा 211 तक ही सीमित नहीं होगी बल्कि आपराधिक साजिश व अन्य अपराधों के तहत भी कार्रवाई की जा सकती है। कोर्ट ने कहा है कि वह की जाने वाली कार्रवाई के बारे में अपनी कोई राय प्रकट नहीं कर रहे। कोर्ट ने कहा है कि अगर जुर्माने की रकम तय समय में नहीं जमा कराई गई तो कानून के तहत रिकवरी कार्रवाई की जा सकती है। एजेंसियों को इसके लिए छूट दी गई है।
MadhyaBharat
15 July 2022
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