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कोलकाता। पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र के बीच अमूमन कई मुद्दों पर टकराव होता है, लेकिन लंबे अरसे से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर न भेजे जाने के मुद्दे पर दोनों सरकारों के बीच ठनी हुई है। राज्य के पांच आईएएस अधिकारियों को केंद्र प्रतिनियुक्ति पर लेना चाहता है, लेकिन राज्य सरकार अनुमति नहीं दे रहा। इस वजह से दिल्ली डेपुटेशन पर जाने के इच्छुक नौकरशाहों में बंगाल सरकार से नाराजगी है।
दरअसल, हर साल एक बैच में पास करने वाले आईएएस अधिकारियों का एक चौथाई हिस्सा केंद्र अपने पास रख लेता है। इन अधिकारियों के काम करने के तरीके, साफ-सुथरी छवि और दक्षता को देखते हुए केंद्र इनके नाम की सूची राज्यों को भेज देता है और अमूमन सारे राज्य इसे मान लेते हैं, लेकिन लंबे अरसे से पश्चिम बंगाल सरकार केंद्र के इस अनुरोध को नहीं मान रही। इसीलिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर मौजूद आईएएस अधिकारियों में सबसे कम संख्या पश्चिम बंगाल की है।
राज्य सचिवालय के एक अधिकारी ने बताया कि पिछले एक दशक से पश्चिम बंगाल को 316 आईएएस अधिकारियों की जरूरत है, लेकिन केवल 198 अधिकारी हैं। इसीलिए विभिन्न विभागों के सचिव स्तर के 20-22 अधिकारियों को अतिरिक्त जिम्मेदारियां दी गई हैं। पश्चिम बंगाल में 1989 बैच के अनिल वर्मा, 90 बैच के विवेक कुमार, विवेक भारद्वाज और सुब्रत गुप्ता, 91 बैच के कृष्णा गुप्ता को केंद्र ने दिल्ली डेपुटेशन पर भेजने के लिए पत्र भेजा था, लेकिन राज्य सरकार ने केवल विवेक भारद्वाज को दिल्ली जाने की अनुमति दी है, जो फिलहाल कोयला मंत्रालय में सचिव हैं।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अक्सर शिकायत की है कि राज्य में नौकरशाहों की कमी के कारण विकास की गति बाधित हो रही है। केंद्र को भी इस बात की जानकारी पहले से है। लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के तहत कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालय के सचिव संजय कोठारी ने कई साल पहले राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव संजय मित्रा को एक पत्र लिखा था। उसमें कहा था, "केंद्र पश्चिम बंगाल में आईएएस अधिकारियों की कमी से अनजान नहीं है। यदि राज्य चाहता है तो कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग कमी को पूरा करने के लिए केंद्रीय सचिवालय सेवा (सीएसएस) के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति कर सकता है। कोठारी ने उम्मीद जताई कि जैसे-जैसे प्रशासन में अधिकारियों की कमी दूर होगी, विकास की गति तेज होगी। हालांकि, ममता बनर्जी ने राज्य प्रशासन में इस 'केंद्रीय घुसपैठ' को स्वीकार नहीं किया।
दिल्ली से बुलावा आने के बावजूद राज्य की सहमति नहीं पाने वाले एक नौकरशाह ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा, "राज्य में कम नौकरशाह हैं, यह तर्क निराधार है। नौ महीने पहले मैंने लिखित और मौखिक रूप से राज्य से मुक्त होने के लिए आवेदन किया। मुख्य सचिव से मिलकर मैंने अपना तर्क रखा, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।" एक अन्य अधिकारी ने कहा, "अब मेरी सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आ रहा है। आम तौर पर कम से कम दो साल के कार्यकाल के बिना केंद्रीय सेवा में भर्ती नहीं किया जाता है।
दरअसल, केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के मुद्दे पर राज्य और केंद्र में टकराव 2021 के विधानसभा चुनाव के समय से शुरू हुआ है। चुनाव के समय जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बंगाल आए थे, तब नियमों को ताक पर रखकर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री के साथ घूम रहे थे। इसके बाद केंद्र ने काफी सख्ती बरती थी, जिससे बचने के लिए तत्कालीन मुख्य सचिव अलापन बनर्जी ने स्वेच्छा सेवानिवृत्ति ले ली थी।
पिछले विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र ने भाजपा के अखिल भारतीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हुए हमले के सिलसिले में तीन आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति मांगी थी, लेकिन राज्य ने उन्हें भी नहीं भेजा था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बावत पिछले साल 13 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा था। केंद्र आईएएस (कैडर) अधिनियम, 1954 में संशोधन कर रहा है। उन्होंने आरोप लगाया था कि मोदी सरकार नौकरशाही को पूरी तरह से अपने हाथों में लेना चाहती है।
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