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भारत में ज्यादातर सरकारी स्कूलों की बात करने पर ज़हन में सिर्फ खराब इमेज ही बनती है। और इस वजह से अभिभावक अपने बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूलों में करवाने से घबराते हैं।और कभी- कभी यह भी होता है कि जिन सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहतर है तो वहां एडमिशन मिलना भी मुश्किल होता है। अधिकतर सरकारी स्कूलों में गरीब परिवारों के बच्चे ही पढ़ते हैं । लेकिन अगर सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार हो जाए और शिक्षक अपनी जिम्मेदारी का सही निर्वहन करने लगें तो अभिभावक बच्चों के एडमिशन के लिए उन्हें ही वरीयता देंगे। इन दिनों छत्तीसगढ़ के सरगुजा में चिकलाडीह के सरकारी स्कूल के हेडमास्टर, कृपाशंकर श्रीवास्तव चर्चा में हैं. इन्होंने अपने स्कूल की तस्वीर का पूरी तरह से कायाकल्प कर दिया है ।
हेडमास्टर कृपाशंकर श्रीवास्तव सामने भी थीं बड़ी चुनौतियां लेकिन उन चुनौतियों को कैसे अवसर में बदला ये देखिए-
कृपाशंकर श्रीवास्तव ने 2011 में इस स्कूल की बागडोर संभाली थी।उस समय उनके सामने कई चुनौतियां थीं।उन्हें पता था कि उन्हें न सिर्फ स्कूल के खराब बुनियादी ढांचे को ठीक करवाना है, बल्कि कम नामांकन दर और लापरवाह शिक्षकों की परेशानी भी खत्म करनी है। हेडमास्टर जानते थे कि आदिवासी ग्रामीण इलाकों के बच्चों को स्कूल में एडमिशन दिलाना और उनकी नियमित अटेंडेंस सुनिश्चित करवाना आसान नहीं होगा ।छत्तीसगढ़ का यह सरकारी स्कूल 1947 में बना था। कृपाशंकर श्रीवास्तव ने सरकार से कोई मदद मांगने के बजाय अपने फंड का इस्तेमाल किया।10 से भी ज्यादा सालों से वह स्कूल के माहौल में बदलाव लाने के लिए अपने मासिक वेतन से एक दिन की आय दे रहे हैं। इससे उनके यहां बच्चों के नामांकन दर में काफी सुधार हुआ है। हेडमास्टर श्रीवास्तव इस साल स्कूल से रिटायर हो रहे हैं। उन्होंने स्कूल की पूरी तस्वीर बदल दी ह।उन्होंने छात्रों को पढ़ाने के लिए शैक्षिक मूल्यों और अच्छे परिवेश पर जोर दिया और सारी चुनौतियों को किनारे लगाकर गुरू का असली अदा कर दिया ।
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