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नई दिल्ली। वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस, गोरखपुर को प्रदान किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने रविवार को विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से इस संबंध में निर्णय लिया।
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अनुसार अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर को वर्ष 2021 के गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है। पुरस्कार मानवता के सामूहिक उत्थान में योगदान देने के लिए गीता प्रेस के महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान को मान्यता देता है। यही सच्चे अर्थों में गांधीवादी जीवन का प्रतीक है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गीता प्रेस को अपनी स्थापना के सौ साल पूरे होने पर गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना संस्थान द्वारा सामुदायिक सेवा में किए गए कार्यों की पहचान है।
उल्लेखनीय है कि 1923 में स्थापित गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। इसने अभी तक 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इनमें 16.21 करोड़ श्रीमद्भगवद्गीता शामिल हैं। संस्था ने राजस्व सृजन के लिए कभी भी अपने प्रकाशनों में विज्ञापन पर भरोसा नहीं किया है। गीता प्रेस अपने संबद्ध संगठनों के साथ, जीवन की बेहतरी और सभी की भलाई के लिए प्रयासरत है।
गांधी शांति पुरस्कार महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर महात्मा गांधी द्वारा प्रतिपादित आदर्शों को श्रद्धांजलि के रूप में 1995 में भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वार्षिक पुरस्कार है। पुरस्कार राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, जाति, पंथ या लिंग की परवाह किए बिना सभी व्यक्तियों के लिए खुला है। पुरस्कार में एक करोड़ रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला/हथकरघा वस्तु प्रदान की जाती है।
हाल के पुरस्कार विजेताओं में सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद, ओमान (2019) और बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान (2020), बांग्लादेश शामिल हैं। पिछले पुरस्कार विजेताओं में इसरो, रामकृष्ण मिशन, बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक, विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी, अक्षय पात्र, बेंगलुरु, एकल अभियान ट्रस्ट, भारत और सुलभ इंटरनेशनल, नई दिल्ली जैसे संगठन शामिल हैं।
यह पुरस्कार दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत डॉ. नेल्सन मंडेला, तंजानिया के पूर्व राष्ट्रपति डॉ जूलियस न्येरेरे, सर्वोदय श्रमदान आंदोलन के संस्थापक अध्यक्ष (श्रीलंका) डॉ. एटी अरियारत्ने, जर्मनी के डॉ. गेरहार्ड फिशर, बाबा आमटे, डॉ. जॉन ह्यूम (आयरलैंड), चेकोस्लोवाकिया के पूर्व राष्ट्रपति वाक्लाव हवेल, दक्षिण अफ्रीका के आर्कबिशप डेसमंड टूटू, चंडी प्रसाद भट्ट और योही ससाकावा (जापान) को भी दिया जा चुका है।
MadhyaBharat
18 June 2023
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