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कोरबा। छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से एकमात्र कोरबा की सीट अभी तक के रुझानों में कांग्रेस की झोली में जाती दिख रही है। कोरबा लोकसभा से चुनाव लड़ रही भाजपा की दीदी सरोज पांडे और कांग्रेस की भाभी ज्योत्स्ना महंत में कांटे की टक्कर है। कथित तौर पर कोरबा को अपना मायका बताने वाली दीदी पर आखिरकार शुरू से लग रहा बाहरी का ठप्पा महंगा पड़ गया। वैसे यह मसला भाजपा के ही निगम में नेता प्रतिपक्ष हितानन्द अग्रवाल व दूसरे नेताओं ने सांसद ज्योत्सना महंत को लापता बता कर छेड़ा था और अब उन पर ही भारी पड़ता दिख रहा है। कहा जाए कि चुनाव में ओवर रिएक्ट और ओवर कॉन्फिडेंस भारी पड़ रहा है तो कोई गलत नहीं होगा।
विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत की रणनीति के आगे भाजपा के सारे दांव-पेंच फेल हो गए। लोगों का भाजपा में प्रवेश कराना भी काम नहीं आया और जिले की पाली-तानाखार,रामपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की बढ़त को रोकने में भाजपा सफल नहीं हो सकी है। हालांकि कोरबा विधानसभा में मंत्री लखन लाल देवांगन का जोर लगाना काम आया है। मतदाताओं ने सरल, सहज और मिलनसार भाभी ज्योत्स्ना महंत पर एक बार फिर से भरोसा जताया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के नाम की मुहर लग रही है लेकिन कोरबा लोकसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी द्वारा प्रत्याशी चयन को लेकर की गई चूक, स्थानीय नेताओं से तालमेल की कमी और जिला संगठन का केन्द्रीयकरण कुछ लोगों में होने, प्रत्याशी का स्थानीय पदाधिकारियों पर ज्यादा भरोसा नहीं करना और अपनी फौज लेकर चलना, मीडिया के साथ सभी तरह के मीडिया प्रभारियों के समन्वय का पूर्णतः और अंत तक अभाव आखिरकार इस बार भी भाजपा को खाली हाथ रहने के लिए मजबूर करती नजर आ रही है। तमाम राष्ट्रीय नेताओं, स्टार प्रचारको की भी अपील काम नहीं आई और स्थानीय जनप्रतिनिधि श्रीमती महंत को जनता ने चुनकर एक बार फिर दिल्ली में भेजने का फैसला कर लिया है।
अभी तक के रुझानों में जो अधिकृत जानकारी निर्वाचन आयोग से जारी की गई है उसमें छत्तीसगढ़ के 11 में से एकमात्र कोरबा लोकसभा कांग्रेस के खाते में जाती दिख रही है।
हालांकि अंतिम मत की गिनती तक कुछ भी कहा नहीं जा सकता और परिणाम में उलटफ़ेर हो सकते हैं लेकिन कोरबा सीट कांग्रेस जीत रही है, यह तो अब तक तय हो चुका है। भारतीय जनता पार्टी के पंडाल में कुर्सियां पूरी तरह से खाली नजर आई हैं जो उनकी निराशा को बताने के लिए काफी है। स्थानीय पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्तागण इस पंडाल में देखने को नहीं मिले हैं जिसे लेकर भी चर्चा का बाजार गर्म है।
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