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पाट जात्रा पूजा विधान के साथ बस्तर दशहरा पर्व का शुभारंभ
jagdalpur, Bastar Dussehra festival , Paat Jatra puja

जगदलपुर । रियासत कलीन ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का शुभारंभ आज रविवार काे पाटजात्रा पूजा विधान के साथ हो गया है। सबसे लंबी अवधि 75दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा पर्व प्रति वर्ष हरियली अमावस्या के दिन दंतेश्वरी मंदिर सिंहद्वार के समक्ष बिलोरी के जंगल से लाई गई साल की लकड़ी की पूजा कर पाट जात्रा पूजा विधान संपन्न किया गया। इस लकड़ी से विशालकाय हथौड़ा बनाया जायेगा, जिसका उपयोग बस्तर दशहरा के दुमंजिला विशाल रथ के पहिए के निर्माण के दौरान हथौड़े के रूप में किया जाता है। इसके साथ ही बस्तर दशहरा के लिए नये विशाल दुमंजिला रथ का निर्माण शुरू हो जायेगा। इस दाैरान बस्तर दशहरा के आयोजन में अहम भूमिका निभाने वाले पुजारी, मांझी-मुखिया, चालकी, नाईक रथ निर्माण के कारीगर के साथ बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष बस्तर सांसद महेश कश्यप, महापाैर सफीरा साहू, बस्तर कलेक्टर विजय दयाराम, तहसीलदार व अन्य बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

 

 

 

बस्तर की आराध्य मां दंतेश्वरी के पूजा अनुष्ठान का पर्व बस्तर दशहरा की शुरुआत हरेली अमावस्या से होती है। इसमें बिलोरी के जंगल से लाई गई लकड़ी जिसकी पूजा की परंपरा पाटजात्रा पूजा विधान कहलाती है। वस्तुत: पाटजात्रा पूजा विधान बस्तर दशहरा में बनाये जाने वाले दुमंजिला विशाल रथ के निर्माण में उपयोग की जाने वाले परंपरागत औजारों की पूजा है। इसमें जिस लकड़ी की पूजा की जाती है, उसे स्थानिय बोली में ठुरलू खोटला कहा जाता है, इस लकड़ी से विशालकाय हथौड़ा बनाया जायेगा, जिसका उपयोग बस्तर दशहरा के दुमंजिला विशाल रथ के पहिए के निर्माण के दौरान हथौड़े के रूप में किया जाता है। इस लकड़ी के साथ ही अन्य परंपरागत रथ निर्माण के औजारों की भी परंपरानुसार पूजा रथ निर्माण करने वालाें के द्वारा की जाती है, पूजा विधान में अन्य पूजा सामग्रीयों के अलावे विशेष रूप से अंडा, मोंगरी मछली व बकरे की बलि दिये जाने की रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन किया गया।

 

 

 

उल्लेखनीय है कि बस्तर दशहरा महापर्व मनाने की शुरुआत के ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार वर्ष 1408 में बस्तर के काकतीय शासक महाराजा पुरुषोत्तम देव को जगन्नाथपुरी में रथपति की उपाधि दी गई थी, तथा उन्हें 16 पहियों वाला एक विशाल रथ के साथ भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र के विग्रह भेंट किया गया था। इस तरह बस्तर में 617 वर्षाें से बस्तर दशहरा मनाया जा रहा है। राजा पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथ पुरी से वरदान में मिले 16 चक्कों के रथ को बांट दिया था। उन्होंने सबसे पहले रथ के चार चक्कों को भगवान जगन्नाथ को समर्पित किया और बाकी के बचे हुए 12 चक्कों को दंतेश्वरी माई को अर्पित कर बस्तर दशहरा व बस्तर गोंचा महापर्व मनाने की परंपरा को शुरू किया था। तब से लेकर अब तक यह परंपरा अनवरत जारी है। बस्तर दशहरा महापर्व हरियाली अमावस्या के दिन शुरू होकर पूरे 75 दिनों तक चलता है, लेकिन इस वर्ष 77 दिनाें में पर्व काे संपन्न किया जायेगा।

MadhyaBharat 4 August 2024

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