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नई दिल्ली । रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की यात्रा के दौरान अमेरिका ने भारत को 52.8 मिलियन डॉलर से पनडुब्बी रोधी युद्ध सोनोबॉय और संबंधित उपकरणों की संभावित विदेशी सैन्य बिक्री को मंजूरी दे दी है। इसका ऐलान वाशिंगटन डीसी के पेंटागन में अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन के साथ द्विपक्षीय बैठक के बाद किया गया है। राजनाथ सिंह ने एक गोलमेज सम्मेलन में अग्रणी अमेरिकी रक्षा कंपनियों के साथ सार्थक बातचीत की है। साथ ही अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारजेक सुलिवन से मिलकर आपसी हित के प्रमुख रणनीतिक मामलों पर चर्चा की है।
अमेरिकी रक्षा विभाग की रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी ने एक बयान में कहा है कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत को 52.8 मिलियन डॉलर की अनुमानित लागत पर पनडुब्बी रोधी युद्ध सोनोबॉय और संबंधित उपकरणों की संभावित विदेशी सैन्य बिक्री को मंजूरी दे दी है। भारत सरकार ने अमेरिका से हाई एल्टीट्यूड एंटी-सबमरीन वारफेयर सोनोबॉय और कई अन्य उपकरण खरीदने का अनुरोध किया है। डीएससीए के बयान में कहा गया है कि यह उपकरण भारतीय नौसेना की आवश्यकताओं को पूरा करेंगे।
इसमें कहा गया है कि प्रस्तावित बिक्री अमेरिका-भारत रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने के साथ अमेरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों का समर्थन करेगी, जो भारत-प्रशांत और दक्षिण एशिया क्षेत्रों में राजनीतिक स्थिरता, शांति और आर्थिक प्रगति के लिए एक महत्वपूर्ण शक्ति है। भारत और अमेरिका ने पिछले साल रक्षा औद्योगिक सहयोग रोडमैप को अपनाया था। इसका उद्देश्य हवाई युद्ध और भूमि गतिशीलता प्रणालियों, खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही, युद्ध सामग्री और समुद्री क्षेत्र सहित महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी सहयोग और सह-उत्पादन को गति देना है।
यूएस इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम और इंडिया एनर्जी स्टोरेज एलायन्स की साझेदारी में 'हाइड्रोजन और भंडारण पर यूएस-भारत साझेदारी' पर एक उच्च स्तरीय गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया। इस कार्यक्रम में अमेरिकी ऊर्जा विभाग के उप सचिव डेविड एम. तुर्क, अंतरराष्ट्रीय मामलों के लिए ऊर्जा के सहायक सचिव डॉ. एंड्रयू लाइट और भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के संयुक्त सचिव अजय यादव शामिल हुए। सम्मेलनमें दोनों देशों के लिए स्थायी ऊर्जा समाधान को आगे बढ़ाने में हाइड्रोजन और ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों के महत्व पर जोर दिया गया। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में 'मेक इन इंडिया' के लिए उन्हें भारतीय भागीदारों के साथ काम करने के लिए आमंत्रित किया गया।
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