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नई दिल्ली । विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने सोमवार को भारत-रूस के बीच व्यापार असंतुलन के तत्काल समाधान की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि द्विपक्षीय व्यापार आज 66 अरब अमेरिकी डॉलर है और 2030 तक 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा। हालाँकि व्यापार असंतुलन एकतरफा है, जिसे दूर करने के लिए जरूरी है कि गैर-टैरिफ बाधाओं और नियामक बाधाओं का तेजी से समाधान किया जाए।
विदेश मंत्री और रूस के उपप्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव ने आज मुंबई में आयोजित भारत-रूस बिजनेस फोरम को संबोधित किया। इस दौरान विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने भारत-रूस बिजनेस फोरम में मुख्य भाषण दिया। विदेश मंत्री ने कहा कि कई दशकों तक 8 प्रतिशत की विकास दर रखने वाले भारत और एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन प्रदाता और प्रौद्योगिकी नेतृत्वकर्ता रूस के बीच साझेदारी दोनों और दुनिया के लिए लाभकारी होगी। इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने 10 महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला।
उन्होंने वर्तमान परिस्थियों में दोनों देशों की मुद्राओं में व्यापार को महत्वपूर्ण माना और कहा कि विशेष रुपया-वोस्ट्रो खाते अभी एक प्रभावी तंत्र हैं। हालाँकि अल्पावधि में भी, राष्ट्रीय मुद्रा निपटान के साथ बेहतर व्यापार संतुलन ही इसका उत्तर है।
भारत-रूसी अर्थव्यवस्था की पूरक प्रकृति का उल्लेख करते हुए जयशंकर ने कहा कि हमारा दृष्टिकोण लेन-देन का नहीं है, बल्कि दीर्घकालिक साझेदारी बनाने का है। तेल, गैस, कोयला या यूरेनियम जैसे ऊर्जा क्षेत्रों में भारत हमेशा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एक प्रमुख खिलाड़ी रहेगा। यह विभिन्न प्रकार के उर्वरकों की मांग पर भी लागू होता है। परस्पर लाभकारी व्यवस्था बनाने से हमें अपने समय की अस्थिरता और अनिश्चितता से निपटने में मदद मिलेगी।
विदेश मंत्री ने कहा कि वैश्विक कार्यस्थल का उद्भव भी आज एक बढ़ती हुई वास्तविकता है। जनसांख्यिकीय असमानता ने दुनिया भर में मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा कर दिया है। इस संबंध में भारत और रूस भी भागीदार हो सकते हैं। इसके लिए एक केंद्रित पहल की आवश्यकता होगी जो रूसी बाजार के लिए मानव संसाधनों को अनुकूलित करे। यह व्यवसायों की सक्रिय भागीदारी के साथ सबसे अच्छा किया जाता है।
MadhyaBharat
11 November 2024
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