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राजस्थान के माउंट आबू के जंगलों में भीषण आग
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सिरोही । राजस्थान के माउंट आबू के जंगलों में लगी भीषण आग ने बहुत बड़े क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया है। आग से वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को गंभीर क्षति पहुंची है। इससे वन्य जीवों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है। आग लगने के 20 घंटे बाद भी जंगल का बड़ा हिस्सा धुएं से घिरा हुआ है। कई स्थानों पर अभी भी आग की लपटें देखी जा रही हैं। इस पर काबू पाने की कोशिशें की जा रही हैं।


माउंट आबू का जंगल 300 से अधिक भालुओं का प्राकृतिक आवास है। इसके अलावा इस जंगल में अन्य कई तरह के वन्यजीव हैं, जिनको क्षति पहुंची होगी। इस आग की तीव्रता से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने ही वन्यजीव प्रभावित हुए होंगे। इसको लेकर वन विभाग ने अब तक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है। हालांकि स्थानीय लोगों का मानना है कि आग इतनी भयानक है कि कई जानवर इसकी चपेट में आ गए होंगे। आग पर काबू पाने के लिए एयरफोर्स, आर्मी और सीआरपीएफ के जवानों को भी राहत कार्य में लगाया गया है। रविवार को भी वन विभाग के 30 से अधिक कर्मचारी आग बुझाने में जुटे रहे। अभी भी आग पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया जा सका है।


वन विभाग के अनुसार आग की शुरुआत शनिवार दोपहर 2 बजे छीपाबेरी क्षेत्र से हुई थी। तेज़ हवा के कारण आग तेजी से फैली और शाम 5 बजे तक यह लगभग 100 हेक्टेयर क्षेत्र को अपनी चपेट में ले चुकी थी। आग की भयावहता इतनी अधिक थी कि 17 किलोमीटर दूर गंभीरी नदी के किनारे से भी इसका धुआं देखा जा सकता था। जंगल में आग बुझाने का कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण रहा, क्योंकि घने वन क्षेत्र में दमकल वाहनों की पहुंच संभव नहीं थी। वनकर्मियों ने पैदल ही उपकरण लेकर अंदर जाने का प्रयास किया। हालात बिगड़ने पर एयरफोर्स और आर्मी से सहायता मांगी गई, जिसके बाद माउंट आबू एयरफोर्स स्टेशन से फायर ब्रिगेड की गाड़ी और जवान मौके पर पहुंचे।


आर्मी के जवानों ने भी करीब छह घंटे तक आग बुझाने के प्रयास किए। रेंजर गजेंद्र सिंह के अनुसार, जंगल के भीतर पानी ले जाना संभव नहीं था, इसलिए वनकर्मियों ने लोहे के पंजों की मदद से फायर लाइन बनाकर आग के प्रसार को रोकने का प्रयास किया। अब तक लगभग 80 प्रतिशत आग पर काबू पा लिया गया है, लेकिन गंभीरी नाले के आसपास अभी भी धुआं उठता देखा जा सकता है।      ि     वन विभाग आग लगने के कारणों की जाँच कर रहा है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि आग प्राकृतिक कारणों से लगी या किसी मानवीय लापरवाही का नतीजा थी। 

MadhyaBharat 30 March 2025

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