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जबलपुर । मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रानीदुर्गावती विश्वविद्यालय में एक महिला अधिकारी द्वारा कुलगुरु राजेश वर्मा पर लगाए गए छेड़छाड़ के गंभीर आरोपों के मामले में जांच को लेकर नाराजगी जताई। निर्धारित समय पर कोर्ट के समक्ष सीलबंद लिफाफे में एक रिपोर्ट पेश की गई। रिपोर्ट के अध्ययन के बाद यह स्पष्ट हुआ कि रिपोर्ट में कुलगुरु कक्ष में लगे उस सीसीटीवी कैमरे के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई,जो इस पूरे प्रकरण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू माना जा रहा है। अदालत द्वारा दिनांक 8 मई को दिए गए आदेशों का पूर्ण रुप से पालन नहीं किया गया है। कोर्ट ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि आरोपों की पुष्टि या खंडन इस बात पर निर्भर करता है कि जिस समय घटना घटी, उस समय कुलपति कक्ष में लगा सीसीटीवी कैमरा काम कर रहा था या नहीं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने अब सीधे जबलपुर कलेक्टर को जांच की ज़िम्मेदारी सौंप दी है। अदालत ने आदेश दिया है कि कलेक्टर विश्वविद्यालय में जांच समिति द्वारा दर्ज किए गए गवाहों के बयानों और दस्तावेज़ों की पूरी समीक्षा करें। इसके बाद वे एक शपथ-पत्र के माध्यम से अदालत को यह बताएं कि क्या 8 मई के आदेशों का ईमानदारी से पालन हुआ है या नहीं। अदालत ने यह भी कहा है कि यदि जबलपुर कलेक्टर द्वारा दिया गया हलफनामा संतोषजनक नहीं पाया गया, तो कोर्ट इस मामले की जांच को विश्वविद्यालय और राज्य प्रशासन से बाहर ले जाकर किसी स्वतंत्र, निष्पक्ष और सक्षम तीसरी एजेंसी को सौंप देगा।
घटना के बाद जब महिला ने सीसीटीवी फुटेज की मांग की, तो विश्वविद्यालय प्रबंधन ने यह कहकर मना कर दिया कि "तकनीकी कारणों से कैमरा उस दिन काम नहीं कर रहा था।" इससे यह संदेह और गहराया कि कहीं जानबूझकर फुटेज हटाया तो नहीं गया। पीड़िता की ओर से अदालत में पेश हुए अधिवक्ता आलोक बागरेचा और दीपक तिवारी ने कई ऐसे दस्तावेज़ प्रस्तुत किए, जिनसे यह प्रतीत होता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने साक्ष्य को दबाने की कोशिश की।
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