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नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिका खारिज करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि जस्टिस वर्मा की याचिका पर सुनवाई नहीं की जा सकती क्योंकि वो आंतरिक जांच पैनल के समक्ष पेश हो चुके हैं और अब जांच पैनल के अधिकार पर सवाल उठा रहे हैं। कोर्ट ने 30 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा से कहा कि आपका आचरण विश्वसनीय नहीं है। कोर्ट ने पूछा कि आप आंतरिक जांच पैनल के सामने पेश क्यों हुए थे। आपने उसे चुनौती क्यों नहीं दी। आपको आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट को पहले चुनौती देनी चाहिए थी।
उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि जस्टिस वर्मा रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजने का भी विरोध कर रहे हैं, राष्ट्रपति ही जजों को नियुक्त करते हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख हैं तो उन्हें जानकारी देने का विरोध क्यों किया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय के सवालों पर जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि वह राष्ट्रपति को जानकारी देने का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन घर से मिले पैसे जस्टिस वर्मा के थे, ऐसा क्यों मान लिया गया। इसकी तो जांच होनी चाहिए थी कि पैसे किसके थे।
याचिका में जस्टिस वर्मा ने आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की थी। याचिका में तत्कालीन चीफ संजीव खन्ना द्वारा संसद से उनके खिलाफ महाभियोग चलाने का आग्रह करने की सिफारिश को भी रद्द करने की मांग की गई थी।
14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से नकदी मिलने के बाद उच्चतम न्यायालय ने एक जांच कमेटी के गठन का आदेश दिया था। राष्ट्रपति ने जस्टिस वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालयसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ट्रांसफर कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने 22 मार्च को इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी के गठन का आदेश दिया था। इस जांच कमेटी में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालयके चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालयके जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे।
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