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जबलपुर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की वार्षिक बैठक के दूसरे दिन शुक्रवार को सिख परम्परा के नवम गुरु श्री गुरुतेगबहादुर की शहादत को लेकर संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने उनके सर्वस्व जीवन के के ऊपर प्रकाश डाला। सरकार्यवाह ने बताया कि इस वर्ष सिख परम्परा के नवम गुरु श्री गुरुतेगबहादुर जी की शहादत के 350 वें प्रेरणादायी दिवस पर विभिन्न धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं सहित भारत के सम्पूर्ण समाज द्वारा श्रद्धा एवं सम्मान के साथ अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। संघर्ष के उस कालखंड में भारत का अधिकांश भू-भाग विदेशी शासक औरंगजेब के क्रूर अत्याचारों से त्रस्त था। सम्पूर्ण भारतवर्ष में अनादिकाल से चली आ रही धर्माधिष्ठित संस्कृति एवं आस्थाओं को नष्ट करने हेतु बलपूर्वक मतांतरण किया जा रहा था।
उसी कालखंड में कश्मीर घाटी से समाज के प्रमुख जन एकत्र होकर पं.कृपाराम दत्त जी के नेतृत्व में श्री गुरुतेगबहादुर जी के पास मार्गदर्शन हेतु आए। श्री गुरुजी ने परिस्थिति की भीषणता को समझते हुए समाज की चेतना एवं संकल्प शक्ति को जगाने हेतु निज के देहोत्सर्ग का निश्चय किया और औरंगजेब की क्रूर सत्ता को चुनौती दी। धर्मांध कट्टरपंथी शासन ने उन्हें गिरफ्तार कर मुसलमान बनो या मृत्युदंड स्वीकार करने को कहा। गुरु तेगबहादुरजी ने अत्याचारी शासन के सामने सिर झुकाने के स्थान पर आत्मोत्सर्ग का मार्ग स्वीकार किया। श्री गुरुतेगबहादुर जी के संकल्प और आत्मबल को तोड़ने की कुचेष्टा में मुगल सल्तनत ने उनके शिष्यों, भाई दयाला (देग में गरम तेल में उबालकर),भाई सतीदास (रुई-तेल में लपेटकर जीवित जलाकर) तथा भाई मतिदास (आरे से चीर कर) की नृशंसतापूर्वक हत्या की।
तदुपरांत श्री तेगबहादुरजी मार्गशीर्ष शुक्ल 5,संवत् 1732 (सन् 1675) को दिल्ली के चांदनी चौक में धर्म की रक्षा के लिए दिव्य ज्योति में लीन हो गए। उनकी शहादत ने समाज में धर्म की रक्षा के लिए सर्वस्वार्पण एवं संघर्ष का वातावरण खड़ा कर दिया, जिसने मुगल सत्ता की नींव हिला दी। श्री गुरु तेगबहादुर जी का जीवन समाज में धार्मिक आस्था के दृढ़ीकरण हेतु, रूढ़ि-कुरीतियों से समाज को मुक्त कर समाज कल्याण के लिए समर्पित था। उन्होंने श्रेष्ठ जीवन के लिए हर्ष-शोक,स्तुति-निंदा, मान-अपमान, लोभ-मोह, काम-क्रोध से मुक्त जीवन जीने का उपदेश दिया। मुगलों के अत्याचारों से आतंकित समाज में उनके संदेश "भै कहु को देत नाहि, न भय मानत आनि" (ना किसी को डराना और न किसी से भय मानना) ने निर्भयता और धर्म रक्षा का भाव जागृत किया।
सरकार्यवाह ने कहा कि भारतीय परंपरा के इस दैदीप्यमान नक्षत्र श्री गुरुतेगबहादुर जी की शिक्षाएं और उनके आत्मोत्सर्ग का महत्व जन-जन तक पहुँचाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी स्वयंसेवकों सहित सम्पूर्ण समाज से आवाह्न करता है कि उनके जीवन के आदर्शों और मार्गदर्शन का स्मरण करते हुए अपने-जीवन का निर्माण करें एवं इस वर्ष आयोजित होने वाले सभी कार्यक्रमों में श्रद्धापूर्वक भागीदारी करें।
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