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विनय तिवारी
4 मई का दिन दतियावासियों या कहें कि पीताम्बरा माई के भक्तों के लिये ऐतिहासिक दिन था। पहली बार मांई अपने लाखों भक्तों के बीच रथ में सवार हो दर्शन देने निकली थीं। भक्ति गीतों और जय माता दी गूंज हर लबों पर थीं। दतिया में हुआ यह धार्मिक अनुष्ठान अपनी गहरी छाप छोड़ गया और यह सवाल भी उठा गया कि क्या मांई का यह सिद्ध स्थल धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में अपनी ख्याति प्राप्त नहीं कर सकता। वैसे भी इन दिनों कई धार्मिक पर्यटन स्थलों को संजाने संवारने और उनको धार्मिक पर्यटन के रूप में तेजी से विकसित किये जाने का सिलसिला जारी है। जब कोई धार्मिक पर्यटन स्थल देश के पर्यटन के मानचित्र पर आ जाता है तो निश्चीय ही वह पर्यटन का प्रमुख केन्द्र बन जाता है। लोगों की आस्था का केन्द्र बन जाता है। इसके लिये सरकार, मंदिर के ट्रस्ट और जनभागीदारी की बहुत जरूरत होती है। पीताम्बरा शक्ति पीठ भले ही धार्मिक स्थल के रूप में विख्यात है लेकिन इसकी ख्याति के लिये अभी बहुत प्रयत्न किया जाना बाकी है। इस स्थल को धार्मिक पर्यटन और पर्यटकों के हिसाब से सुविधाएं जुटाना भी आवश्य्क है। आज नैसर्गिक पर्यटन से ज्यादा लोग धार्मिक यात्रा करना पसंद करते हैं। पीताम्बरा पीठ मंदिर परिसर के विस्तार और उसके आस-पास ठहरने, खान-पान की आधुनिक सुविधाएं विकसित किये जाने की बहुत जरूरत है। क्योंकि पर्यटक कोई भी हो पैसे की चिन्ता नहीं करता वह तो वहां सुविधाएं चाहता है। प्रचार-प्रसार की अपेक्षा रखता है ताकि उसको सारी जानकारी एक क्लिक करते ही मिल जाये। मंदिर के महत्व, अनुष्ठानों की प्रमाणित जानकारी वह प्रकाशित फोल्डरों, पुस्तकों के माध्यम से जानना चाहता है। सीडी या अन्य माध्यमों से वह मांई के गुणगान सुनना चाहता है। जब किसी धार्मिक स्थल की महिमा दूर-दूर तक पहुंचती है तो वह स्थल एक धार्मिक व्यावसायिक केन्द्र का रूप भी ले लेता है। लोगों को रोजगार के साधन मुहैया होने लगते हैं। स्थानीय लोगों को रोजगार के लिये ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ता है। पर्यटक ज्यादा आते हैं तो घर होम स्टे, लॉज होटलों में परिवर्तित होने लगती हैं। रेस्टोरेन्ट भी खुलने लगते हैं। मंदिर के तीज त्यौहार, उत्सवों का स्वरूप बड़ा रूप लेने लगता है। तिथि के हिसाब से हर साल अपने आप ही धार्मिक श्रद्धालु जुटने लगते हैं। पीताम्बरा शक्तिपीठ के लिये ख्यात दतिया वैसे भी रेलवे लाईन पर है। यहां श्रद्धालुओं को आने-जाने में दिक्कत भी नहीं होती है। पुरातत्व दृष्टि से भी दतिया समृद्ध है। दतिया को टूरिस्ट सर्किट से जोड़ा जा सकता है। क्योंकि आगरा, ग्वालियर, झांसी, ओरछा, खजुराहों एक टूरिस्ट सर्किट की तरह हैं। इस बीच दतिया को भी शामिल कर दिया जाये तो यहां का धार्मिक महत्व ओर भी बढ़ सकता है। मध्यप्रदेश शासन को मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थलों को भी मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना से भी जोड़ना चाहिए। मध्यप्रदेश और देशवासियों के लिये मध्यप्रदेश के मंदिर भी आस्था के केन्द्र हैं। दतिया दर्शन योजना पर भी विचार किया जाना चाहिए ताकि मांई के दर्शन करने आया श्रद्धालु पीताम्बरा पीठ के अलावा पूरा दिन क्या-क्या घूमें, यह उसमें शामिल होना आवश्यठक है। जब धार्मिक पर्यटक किसी स्थल पर जाता है तो ठहरता है, प्रसाद खरीदता है, स्थानीय दुकानों से प्रचलित वस्तुये खरीदता है, होटलों में व्यंजनों का स्वाद लेता है। इस प्रक्रिया में स्थानीय दुकानदारों को रोजगार सुलभ होता है। किसी भी धार्मिक स्थल को उसके महत्व और वहां की संस्कृति से प्रसिद्धी दिलायी जा सकती है। हर स्थल के व्यंजनों का स्वाद भी अलग होता है। यदि यहां आने वाले धार्मिक श्रद्धालुओं को दतिया के प्रसिद्ध व्यंजन परोसे जाये तो वह यहां की अलग छबि होकर प्रस्थान करेगा। जिस प्रकार बीते दिनों पीताम्बरा पीठ पर भक्तों का सैलाब उमड़ा, उसको दृष्टिगत लगता है कि इस स्थल को भव्य रूप दिया जा सकता है। पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिये प्रयास तो करने होंगे।
MadhyaBharat
8 May 2022
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