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पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर लगा बैन
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर लगा बैन

 

PFI और इससे जुड़े संगठन 5 साल के लिए प्रतिबंधित

  

 PFI यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ़  इंडिया को केंद्र सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया है। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और इससे जुड़ी संस्‍थाओं को पांच साल के लिए प्रतिबंधित किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसको लेकर अधिसूचना जारी की।  इन सभी को अगले पांच साल के लिए 'गैरकानूनी एसोसिएशन' घोषित किया गया है। नोटिफिकेशन में केंद्र सरकार ने प्रतिबंध के पीछे की कई वजहें गिनाई हैं।  गृह मंत्रालय ने बताया है कि पीएफआई और  अन्‍य संगठनों ने किस तरह भारत में आतंक फैलाया।  भारत सरकार ने इन संगठनों के '10 गुनाह' सामने रखे हैं। पीएफआई के सभी काले अध्यायों को हम आपके सामने रखेंगे। और बताएँगे किन कारनामों की वजह से पीएफआई को बैन किया गया  है। और अब तक इसने कहाँ कहाँ अपने पैर पसारे आतंक मचाया।  पटना में 12 जुलाई को प्रधानमंत्री की रैली में हमले की साजिश की गई। हमला करने के लिए बकायदा एक ट्रेनिंग कैंप भी लगाया था।  मकसद था  2013 जैसी घटना को अंजाम देना। अक्टूबर 2013 में पटना गांधी मैदान में तत्कालीन भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी की रैली में सिलसिलेवार बम ब्लास्ट हुए थे।  उसके पीछे इसी पीएफआई संगठन का हाथ था.जिसके बाद जांच एजेंसियों के कान खड़े हुए।  PFI  के 15 राज्यों के 93 ठिकानों पर 22 सितंबर को NIA-ED ने ऑपरेशन ऑक्टोपस के तहत छापेमारी की।  जिसमे  कोझिकोड से PFI वर्कर शफीक पायथे को गिरफ्तार किया गया।  इसमें  एक बात और निकलकर सामने आई वो ये की PFI को खाड़ी देश से फंडिंग होती है। पैसा  हवाला के जरिए आता है। मोदी की रैली के दौरान पटना पुलिस ने फुलवारी शरीफ से 3 आतंकी को गिरफ्तार किये गए थे। ये सभी प्रधानमंत्री की रैली पर हमले की साजिश रच रहे थे। इन आतंकियों के पास से 7 पन्नों का एक दस्तावेज बरामद हुआ था। जिसके कवर पर 2047 लिखा था। आतंकियों ने 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का मिशन रखा था।  इनके मेंबर्स देशभर में कई आपराधिक साजिशों में शामिल रहे हैं। अब आपको पीएफआई की पूरी कहानी और इनके काले कारनामों को बताते हैं। pfi यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई एक इस्लामिक संगठन है. ये संगठन अपने को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है। संगठन की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF) के उत्तराधिकारी के रूप में हुई।  संगठन की जड़े केरल के कालीकट में गहरी हैं। फिलहाल इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में बताया जा रहा है। शाहीन बाग वो इलाका है जहां पर सीएए और एनआरसी के विरोध में पूरे देश में 100 दिन तक सबसे लंबा आंदोलन चला। एक मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों के के हितों को लेकर रहती है। हालाँकि  वे इस  बहाने राजनीति का खेल खेलते है  ... जिसमे वे दलित और ओबीसी को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश करते आये हैं। और इसी के तहत कई बार इन्होने हिन्दुओं के बीच हिंसा भड़काने में अपनी पूरी भूमिका निभाई। कई ऐसे मौके ऐसे भी आए हैं जब इस संगठन से जुड़े लोग मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर आए हैं। संगठन 2006 में उस समय सुर्ख़ियों में आया था जब दिल्ली के रामलीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। आज कल यह संगठन देश के साथ पाकिस्तान।, बांग्लादेश , श्रीलंका और अन्य जगहों पर भी एक्टिव है। देश की बात करें तो  कहा जा रहा है कि इस संगठन की जड़े  24 राज्यों में फैली हुई है। कहीं पर इसके सदस्य अधिक सक्रिय हैं तो कहीं पर कम। मगर मुस्लिम बहुल इलाकों में इनकी जड़े काफी गहरी है।  संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का हिमायती बताता है। लेकिन सच्चाई कुछ और ही निकलकर सामने आई है।  'पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के नेता रहे हैं। पीएफआई का सम्बन्ध जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) से भी रहा है। ये दोनों संगठन प्रतिबंधित संगठन हैँ।  पीएफआई के वैश्विक आतंकवादी समूहों, जैसे कि इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के साथ भी होने की इनकी खबरे हैं।  पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन या सम्बद्ध संस्थायें या अग्रणी संगठन, चोरी-छिपे देश में असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देकर एक समुदाय के कट्ररपंथ को बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। पीएफआई कई आपराधिक और आतंकी मामलों में शामिल रहा है। कई मामलों से यह स्पष्ट हुआ है की पीएफआई  हिंसक और और देश विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा  हैं।  जिनमें एक कॉलेज प्रोफेसर का हाथ काटना, अन्य धर्मों का पालन करने वाले संगठनों सेजुड़े लोगों की निर्मम हत्या करना, प्रमुख लोगों और स्थानों को निशाना बनाने के लिए विस्फोटक प्राप्त करना, सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाना। पीएफआई का काम अपराधिक कृत्य और जघन्य हत्याएं, सार्वजानिक शांति को भंग करना  और लोगों के मन में आतंक का भय पैदा करना है। पीएफआई के पदाधिकारी और काडर तथा इससे जुड़े अन्य लोग बैंकिंग चैनल, हवाला, दान आदि के माध्यम से सुनियोजित आपराधिक षडयंत्र के तहत भारत के भीतर और बाहर से धन इकट्ठा किया  और फिर उस धन को वैध दिखाने के लिए कई खातों के माध्यम से उसका अंतरण, लेयरिंग और एकीकरण करते हैं। और आपको जानकार हैरानी होगी की  ऐसे धन का प्रयोग भारत में विभिन्‍न आपराधिक, विधिविरुद्ध और आतंकी कार्यो के लिए होता है। कई बार उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात राज्य सरकारों ने पीएफआई को प्रतिबंधित करने की मांग की गई है  पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन या सम्बद्ध संस्थाएं या अग्रणी संगठन देश में आतंक फैलाने और इसके द्वारा राष्ट्र की सुरक्षा और लोक व्यवस्था को खतरे में डालने के इरादे से हिंसक आतंकी गतिविधियों में शामिल रहे हैं तथा पीएफआई की राष्ट्र- विरोधी गतिविधियां राज्य के संवैधानिक ढ़ांचे और सम्प्रभुता का अनादर और अवहेलना करते हैं, और इसलिए इनके विरुद्ध तत्काल और त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए। अब पीएफआई को लेकर केंद्रीय सरकार का मत है कि यदि पीएफआई और इसके सहयोगी संगठनों  पर तत्काल रोक नहीं लगाई गई तो  पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन इसको देश विरोधी कामो में उपयोग करेंगे जैसे ये संगठन अपनी विध्वंसात्मक गतिविधियों को जारी रखेंगे। जिससे लोक व्यवस्था भंग होगी और राष्ट्र का संवैधानिक ढांचा कमजोर होगा आतंक आधारित पश्चगामी तंत्र को प्रोत्साहित एवं लागू करेंगे  यानी आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाएंगे।  एक वर्ग विशेष के लोगों में देश के प्रति असंतोष पैदा करने के उद्देश्य से उनमें राष्ट्र-विरोधी भावनाओं को भड़काना और उनको कट्टरवाद के प्रति उकसाना जारी रखेंगे।  देश की अखण्डता, सुरक्षा और सम्प्रभुता के लिए खतरा उत्पन्न करने वाली गतिविधियों को और तेज करेंगे।  केंद्र सरकार मानना है कि पीएफआई और इसके सहयोगी संगठनों को प्रतिबंधित करना जरूरी है। केंद्रीय सरकार ने  विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 967  की धारा 3 की उप-धारा (॥) द्वारा प्रदत्त्‌ शक्तियों को प्रयोग करते हुए   पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और इसके सहयोगी संगठनों रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया (सीएफआई), आल इंडिया इमाम काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ हयूमन राइट्स आर्गेनाईजेशन (एनसीएचआरओ), नेशनल विमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल सहित को बैन कर दिया है। गृह मंत्रालय ने पांच वर्ष के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। पर सवाल यह की जब ये संगठन इतने खतरनाक इरादों वाले हैं। जो आतंकवाद का साथ दे रहे , दंगा करवा रहे उनको सिर्फ पांच साल बैन ही क्यों। क्यों न आजीवन प्रतिबन्ध लगा दिया जाय। आपको जानकार हैरानी होगी की  संगठन का टारगेट हिन्दुस्तान की सत्ता हांसिल करना था।  दस्तावेजों और जाँच एजेंसी ने खुलासा किया की PFI का मकसद  2047 में जब देश आजादी के 100 साल मना रहा होगा, तब तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना है।  इस दस्तावेज में ये भी लिखा है कि 10% मुस्लिम भी साथ दें, तो कायरों को घुटनों पर ला देंगे  .  CAA कानून और हाथरस जैसी घटनाओं में भी सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने में इन संगठनों का हाथ रहा है। जांच एजेंसी ने देश के 15 राज्यों से PFI के 106 वर्कर्स को गिरफ्तार किया था। इनमें संगठन प्रमुख ओमा सालम भी शामिल है। इस पूरे ऑपरेशन में NIA और ED के 500 अफसर सर्च में शामिल थे।  PFI नेता आतंकवादी गतिविधियों के लिए पैसे, हथियार चलाने के ट्रेनिंग और मिस्लिमों को कट्टरपंथी बनाने का काम करती थी। मध्यप्रदेश में हुए दंगों में भी इनकी भूमिका सामने आई है  ... वहीं अब कुछ मुस्लिमों के हितैसी बने नेताओं ने इस पर राजनीती भी शुरू कर दी है. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने pfi की तुलना आरएसएस और हिन्दू से कर डाली। वोटों की राजनीति देश को कहाँ ले जायेगी। ये शायद इन देश विरोधी समर्थक नेताओं को पता है। लेकिन सत्ता और पद का लालच शायद देश से बड़ा हो गया है। बहरहाल अब देखना ये होगा की किस  तरह से देश की जनता देश द्रोह संगठन के समर्थकों को जवाब देती है। 

MadhyaBharat 28 September 2022

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