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धमतरी। जंगल के भीतर तेंदुए का शव मिला। उनके शरीर में कई जगह चोट के निशान थे। घटना की जानकारी ग्रामीणों ने वन विभाग को दी। वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और शव का पंचनामा पश्चात पोस्टमार्टम किया। लोगों की उपस्थिति में तेंदुए के शव का अंतिम संस्कार किया। तेंदुए के मौत का कारण जंगली जानवरों के साथ लड़ाई होने के बाद घायल होने से मौत होने की आशंका है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के सही कारण का पता चल पाएगा।
वन परिक्षेत्र नगरी के ग्राम दलदली के जंगल में रविवार सुबह ग्रामीणों ने एक तेंदुए के शावक का शव देखा। शव मिलने से ग्रामीणों में हड़कंप मच गया। आसपास क्षेत्रों में कोई नहीं गया। ग्रामीणों ने घटना की जानकारी वन विभाग को दी। सूचना पाकर गरियाबंद डीएफओ मणी भास्कर समेत वन विभाग की टीम ग्राम दलदली के जंगल में घटना स्थल पर पहुंचे। अधिकारी-कर्मचारियों की टीम ने शव का पंचनामा किया। तत्पश्चात शव का डाक्टरों की टीम ने परीक्षण कर पोस्टमार्टम किया। डीएफओ भास्कर ने बताया कि पोस्टमार्टम करने वाले पशु चिकित्सकों के अनुसार तेंदुए के शरीर में कई जगह चोट के निशान है। हेडइंजूरी भी है। वहीं शरीर के कई हड्डी टूटे हुए है, इससे आशंका है कि तेंदुए का किसी अन्य तेंदुए या जंगली सुअर के साथ जमकर लड़ाई हुई होगी।
लड़ाई में घायल होने के बाद उनकी मौत होने की आशंका है। फिलहाल पोस्टमार्टम के बाद रिपोर्ट जांच के लिए लैब भेजी गई है। जांच रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के सही कारण का पता चल पाएगा। जंगल में मिले मृत मादा तेंदुआ है। तेंदुए के शव को देखकर उम्र शावक लग रहा है। दलदली गांव के जंगल में तेंदुए के शव मिलने के बाद अब ग्रामीणों में दशहत है, क्योंकि इससे पहले ग्रामीण बेखौफ होकर जंगल जा रहे थे। अब ग्रामीणों को मालूम हो चुका है कि यहां के जंगल में तेंदुआ है, जो जान के लिए खतरा है।जानकारी के अनुसार पिछले वर्ष 12 अपै्रल 2022 को ग्राम बरारी के जंगल में भी तेंदुए का शव मिला था।
24 मार्च 2022 में भी मगरलोड ब्लाॅक के उत्तर सिंगपुर वन परिक्षेत्र मोहदी अंतर्गत ग्राम सोनपैरी के जंगल में तेंदुए का शव मिला था। उल्लेखनीय है कि तापमान का पारा 42 डिग्री चढ़ गया है। तेज धूप व गर्मी के चलते तालाबों व जंगल क्षेत्रों के गड्ढों का पानी सूख चुका है, ऐसे में प्यास बुझाने जंगली-जानवर इधर-उधर हाथ-पांव मार रहे हैं। जंगल क्षेत्रों में पानी की कमी होने के साथ जंगली जानवर इन दिनों प्यास बुझाने गांवों के करीब आ रहे हैं। क्योंकि जंगलों में पेयजल के लिए कोई उचित स्रोत नहीं है।
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