Since: 23-09-2009

  Latest News :
माकन की टिप्पणी पर भड़की आआपा.   कश्मीर में भीषण शीतलहर पानी की आपूर्ति लाइनें जमीं .   बसपा ही एक ऐसी पार्टी जो गरीब कार्यकर्ताओं की कमाई पर निर्भरः मायावती .   केजरीवाल से मिलने पहुंचे दिल्ली वक्फ़ बोर्ड के इमामों और मोअज्जिन को पुलिस ने रोका.   जेपी नड्डा के आवास पर एनडीए घटक दलों के नेताओं ने की बैठक.   प्रधानमंत्री ने केन-बेतवा लिंक परियोजना का किया शिलान्यास.   अटल जी के सपने को साकार कर रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी : केंद्रीय मंत्री पाटिल.   परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी.   एमआईजी क्षेत्र में दूध का वाहन पलटा.   श्योपुर की सड़क पर घूमते नजर आया कूनो के जंगल में छोड़ा गया चीता अग्नि.   जबलपुर में बजरंग दल की शौर्ययात्रा पुलिस ने रोकी.   स्वच्छता अभियान के तहत ऊर्जा मंत्री पहुंचे द्वार-द्वार.   एक ही परिवार के धर्मांतरित सात सदस्याें ने घर वापसी की.   भाजपा अनुशासित पार्टी सर्वानुमति से हुए मंडल अध्यक्षों के चुनाव : उप मुख्यमंत्री साव.   वीर बाल दिवस हम सभी की राष्ट्र निर्माण के प्रति जिम्मेदारी को समझने का देता है अवसर : मुख्यमंत्री साय.   आरक्षक की माेटरसाइकिल अनियंत्रित हाेकर ट्रांसफार्मर से टकराई.   अज्ञात वाहन ने स्कूटी सवार युवकाें काे मारी टक्कर दाे की माैत.   सबसे ऊंचे नक्‍सली स्मारक काे जवानों ने बम विस्फाेट से उड़ाया.  
भारत में त्यौहारों का मौसम देता है अर्थव्यवस्था को गति
भारत में त्यौहारों का मौसम देता है अर्थव्यवस्था को गति

भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का विशेष महत्व है

 

 

भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का विशेष महत्व है एवं भारतीय नागरिक इन त्यौहारों को बहुत ही श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाते है। गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली, होली, ओणम, रामनवमी, महाशिवरात्रि, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, आदि त्यौहारों को भारत में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में गिना जाता है। कुछ त्यौहारों, जैसे दीपावली, के तो एक दो माह पूर्व ही सभी परिवारों द्वारा इसे मनाने की तैयारियां प्रारम्भ कर दी जाती हैं।  उक्त त्यौहार अक्सर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी लाते हैं क्योंकि देश के सभी नागरिक मिलकर इन त्यौहारों के शुभ अवसर पर वस्तुओं की खूब खरीदारी करते हैं जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। इन त्यौहारों के दौरान देश में एक से लेकर दो लाख करोड़ रुपए के बीच खुदरा व्यापार सम्पन्न होता है जो पूरे वर्ष के दौरान होने वाले खुदरा व्यापार का एक बहुत बढ़ा हिस्सा रहता है। त्यौहारों के खंडकाल में रोजगार के नए लाखों अवसर निर्मित होते हैं और नौकरियों की तो जैसे बहार ही आ जाती है। सूचना प्रौद्योगिकी से लेकर ई-कामर्स तक, खुदरा व्यापार से लेकर थोक व्यापार तक, विनिर्माण इकाईयों से लेकर सेवा क्षेत्र तक - विशेष रूप से पर्यटन, होटेल एवं परिवहन आदि, लगभग सभी क्षेत्रों में न केवल व्यापार में अतुलनीय वृद्धि दर्ज होती है बल्कि रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होते हैं।

 

 भारत में पिछले 5/6 माह से लगातार वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण 140,000 करोड़ रुपए के आसपास बना हुआ है परंतु अब अक्टोबर 2022 माह में इसके 150,000 करोड़ रुपए के आंकड़े को पार कर जाने की उम्मीद की जा रही है क्योंकि दशहरा एवं दीपावली जैसे त्यौहार इस माह में आने वाले हैं। त्यौहारों के मौसम में न केवल टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, कपड़े, सोना, चांदी से निर्मित कीमती आभूषणों की खरीद बढ़ती है बल्कि दो पहिया एवं चार पहिया वाहनों के साथ साथ कई नागरिक नए मकान एवं फ़्लैट खरीदना भी शुभ मानते हैं। कुल मिलाकर चारों ओर लगभग सभी क्षेत्रों में उत्साह भरा माहौल रहता है एवं सभी लोग कुछ न कुछ खरीदते ही नजर आते हैं। हालांकि इन त्यौहारों का आध्यात्मिक एवं सामाजिक महत्व तो बना ही रहता है।

 

 भारत के बारे में यदि यह कहा जाय कि यहां एक तरह से संस्कृति की अर्थव्यवस्था ही चल पड़ी है, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगा। वैसे भी पिछले हजारों सालों से भारत की संस्कृति सम्पन्न रही है और देश की संस्कृति जो इसका प्राण है को मूल में रखकर यदि आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाया जाएगा तो यह देश हित का कार्य होगा। अतः भारत की जो अस्मिता, उसकी पहिचान है उसे साथ लेकर आगे बढ़ने में ही देश का भला होगा। उदाहरण के तौर पर हमारे देश में उक्त वर्णित कुछ बड़े त्योहारों को ही ले लीजिए, ये भी सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं। इन्हें कैसे व्यवस्थित किया जा सकता है ताकि देश के नागरिकों में इन त्योहारों के प्रति उत्साह में और भी बढ़ोतरी हो और इन त्योहारों को मनाने का पैमाना बढ़ाया जा सके और इन त्योहारों पर विदेशी पर्यटकों को भी देश में आकर्षित किया जा सके, इसके बारे में आज विचार किए जाने की आवश्यकता है।

 

 भारत की जो सांस्कृतिक विविधता एवं सम्पन्नता है उसको सबसे आगे लाकर हम भारत को एक सांस्कृतिक महाशक्ति के रूप में परिवर्तित कर सकते हैं। यह हमारा उद्देश्य एवं आकांक्षा होनी चाहिए। भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं में मुख्य रूप से शामिल हैं  -  खाद्य संस्कृति, संगीत, नृत्य, फाइन-आर्ट्स, सिनेमा, सांस्कृतिक पर्यटन (जिसमें हेरिटेज, साइट्स, म्यूजीयम, आदि शामिल है) एवं धार्मिक पर्यटन, आदि। इन सभी पहलुओं को विभिन्न त्यौहारों के दौरान भारत में प्रोत्साहित किये जाने की आज महती आवश्यकता है।

 

 भारत में खाद्य संस्कृति का नाम यहां उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है जो अपने आप में एक बहुत विस्तृत क्षेत्र है। हर देश की अपनी-अपनी खाद्य संस्कृति होती है। भारत तो इस मामले में पूरे विश्व में सबसे धनी देश है। हमारे यहां पुरातन काल से देश के हर भाग की, हर प्रदेश की, हर गांव की, हर जाति की अपनी-अपनी खाद्य संस्कृति है, इसको हम पूरे विश्व में प्रोत्साहित कर सकते हैं। त्यौहारों के दौरान तो भारत में खाद्य संस्कृति अपने पूरे उफान पर रहती है, और इसे भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के साथ त्यौहारों के दौरान प्रोत्साहित किया जा सकता है।

 

किसी समाज का यदि अपनी संस्कृति के प्रति रुझान नहीं है तो उस समाज की संस्कृति का स्तर नीचे गिरता जाता है। यही स्थिति देश की संस्कृति पर भी लागू होती है। जैसे भारत में एक समय पर नृत्य कला इतनी सम्पन्न थी कि लगभग सभी राजे-रजवाड़े एवं सभी समारोहों, धार्मिक समारोह मिलाकर, में नृत्य के बिना कार्य प्रारम्भ एवं सम्पन्न नहीं होता था। परंतु, आज यह कला हम लगभग भूल गए हैं। संगीत, नृत्य, काव्य, साहित्य, मिलकर देश की विभिन्न कलाओं को मूर्त रूप देता है। संस्कृति के अमूर्त रूप को जब तक मूर्त रूप नहीं दिया जाता तब तक आर्थिक पक्ष इसके साथ नहीं जुड़ पाएगा। कला के क्षेत्र में भारत में बहुत ही सूक्ष्म ज्ञान उपलब्ध है। परंतु, इस प्रकार के ज्ञान को मूर्त रूप देने की जरूरत है। आज नृत्य करने वालों की देश में कोई पूछ नहीं हैं। इस प्रकार तो हम हमारी अपनी कला को भूलते जा रहे है। देश में बुनकर आगे नहीं बढ़ पा रहे है। इनकी कला को जीवित रखने के लिए जुलाहों को आगे बढ़ाने की जरूरत है। इस प्रकार की कला को आगे बढ़ाने के लिए न केवल देश की विभिन्न स्तर की सरकारों को बल्कि निगमित सामाजिक जवाबदारी के अंतर्गत विभिन्न कम्पनियों को तथा समाज को भी आगे आने की आवश्यकता है।

 

 विश्व के कई देश अपनी संस्कृति की अर्थव्यवस्था का आंकलन कर चुके हैं और लगातार इस ओर अपना पूरा ध्यान दे रहे हैं।  दुनिया भर में अलग-अलग देशों में इस उद्योग को आंकने के पैमाने उपलब्ध हैं। भारत में अभी इस क्षेत्र में ज़्यादा काम नहीं हुआ है क्योंकि हमारी विरासत बहुत बड़ी है एवं बहुत बड़े क्षेत्र में फैली हुई है। दुनिया भर में इसे सांस्कृतिक एवं रचनात्मक उद्योग का नाम दिया गया है। यूनेस्को भी सांस्कृतिक एवं रचनात्मक उद्योग को वैज्ञानिक तरीके से आंकने का प्रयास कर रहा है और यूनेस्को के एक आंकलन के अनुसार, विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में 4 प्रतिशत हिस्सा  सांस्कृतिक एवं रचनात्मक उद्योग से आता है। अमेरिका जैसे देशों की जीडीपी में तो  सांस्कृतिक एवं रचनात्मक उद्योग का योगदान बहुत अधिक है। एक आंकलन के अनुसार, दुनिया भर में सांस्कृतिक एवं रचनात्मक उद्योग एशिया पेसिफिक, उत्तरी अमेरिका, यूरोप एवं भारत में विकसित अवस्था में पाया गया है। इस उद्योग में विश्व की एक प्रतिशत आबादी को रोजगार उपलब्ध हो रहा है। भारत में चूंकि इसके आर्थिक पहलू का मूल्यांकन नहीं किया जा सका है अतः देश में इस उद्योग में उपलब्ध रोजगार एवं देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान सम्बंधी पुख़्ता आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

 

 हर देश की अपनी विशेष संस्कृति है और हर देश को इसे मूर्त रूप देने एवं इसे आगे बढ़ाने के लिए अलग अलग रणनीति की आवश्यकता होती है। विकसित देशों ने अपनी संस्कृति की अर्थव्यवस्था को मूर्त रूप देने में बहुत सफलता पाई है, इसमें वैल्यू एडिशन कर इसे बहुत ही अच्छे तरीके से प्रोत्साहित किया है, इसीलिए अमेरिका एवं ब्राजील जैसे देशों के सकल घरेलू उत्पाद में सांस्कृतिक एवं रचनात्मक उद्योग का बहुत अच्छा योगदान है। भारत में अभी तक संस्कृति की अर्थव्यवस्था पर ज़्यादा ध्यान ही नहीं दिया गया है। हमें, हमारे देश में विभिन कलाओं का ज्ञान अमूर्त रूप में तो उपलब्ध है परंतु उसे विकसित कर मूर्त रूप प्रदान करने की जरूरत है एवं इन भारतीय कलाओं से पूरे विश्व को अवगत कराये जाने आवश्यकता है, ताकि विश्व का भारत के प्रति आकर्षण बढ़े। आज के इस डिजिटल युग में तो यह बहुत ही आसानी से किया जा सकता है। कला के अमूर्त रूप को यदि हम डिजिटल स्पेस में ले जाकर स्थापित कर सकें तो इसे विश्व में मूर्त रूप दिया जा सकता है। इस महान कार्य में देश में लगातार प्रगति कर रहे स्टार्ट-अप उद्योग की भी मदद ली जा सकती है। साथ ही, भारतीय संस्कृति के उपरोक्त वर्णित विभिन्न पहलुओं को देश में मनाए जा रहे त्यौहारों के दौरान प्रोत्साहित किए जाने की विशेष जरूरत हैं क्योंकि इस दौरान देश के नागरिकों में जबरदस्त उत्साह  पाया जाता है .

 

लेखक - प्रहलाद सबनानी 

सेवा निवृत्त उपमहाप्रबंधक 

भारतीय स्टेट बैंक 

MadhyaBharat 29 September 2022

Comments

Be First To Comment....
Video

Page Views

  • Last day : 8641
  • Last 7 days : 45219
  • Last 30 days : 64212


x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved ©2024 MadhyaBharat News.